भगवान शिव के वैसे तो देशभर में कई ऐतिहासिक और चमत्कारिक मंदिर है, लेकिन मध्यप्रदेश में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जिसकी छत न बनी होने के कारण यह आज तक अधूरा है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार भगवान शिव को हिन्दुओं में देवों के देव महादेव, शंकर सहित कई नामों से भी जाना जाता है। देश में कई जगह इनके मंदिर होने के साथ ही कुल द्वादश ज्योतिर्लिंग भी हैं।
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वहीं श्रावण माह को हिन्दुओं में काफी पवित्र व खास माह माना जाता है, इस दौरान पूरे माह पूर्ण श्रृद्धा व भक्ति से भगवान शिव की पूजा अर्चना, अभिषेक किया जाता है।
शिव का प्रिय माह होने के चलते आज आपको एक ऐसे शिवमंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है, लेकिन माना जाता है कि बस एक शर्त ने इस मंदिर को कभी पूर्ण निर्मित नहीं होने दिया। जिसके चलते ये शिव मंदिर आज तक अधूरा बना हुआ है।
भगवान शिव के वैसे तो देशभर में कई ऐतिहासिक और चमत्कारिक मंदिर है, लेकिन मध्यप्रदेश में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जिसकी छत न बनी होने के कारण यह आज तक अधूरा है।
दरअसल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर में भगवान शिव का भोजेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की छत न बनी होने के कारण ये अधूरा है। इस मंदिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है।
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भोजेश्वर या भोज मंदिर को पूर्व का सोमनाथ कहे जाने के पीछे इसकी कुछ खासियत भी हैं, जो इस प्रकार हैं… इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग लगभग 7.5 फुट लम्बा और 17.8 फुट परिधि वाला है। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि इस शिवलिंग का निर्माण एक ही चट्टान को काट कर किया गया है। इस शिवलिंग को दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है।
राजा भोज के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। राजा भोज के नाम पर ही इस मंदिर का नाम रखा गया था। कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक शर्त लगी थी। यह मंदिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर में स्थित है। इस मंदिर को भोजेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अधूरे रहने की ये है वजह:
इस मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया था। यह अधूरा क्यों रह गया इसके पीछे इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर एक ही रात में बनाने की शर्त थी, ऐसे में यह रात में बनाया गया था, लेकिन छत का काम पूरा होने से पहले ही सूर्योदय हो गया, इसलिए काम छोड़ दिया गया था।
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सावन और महाशिवरात्रि में लगती है भक्तों की कतार…
यूं तो हर महीने की कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मास शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पड़ने वाली महाशिवरात्रि की प्रधानता मानी गई है। महाशिवरात्रि का महत्व इस वजह से भी है कि माना जाता है कि इसी दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। हालांकि मान्यता ये भी है कि महाशिवरात्रि पर ही शिवज्योति प्रकट हुई थी।
यूं तो यहां हर दिन भक्त आते जाते रहते हैं, लेकिन भगवान शिव के पवित्र माह सावन व महाशिवरात्रि पर यहां भक्त लंबी-लंबी कतारों में लगकर भोलेनाथ की पूजा करते हैं। इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने का भी प्रावधान है।
ये भी माना जाता है कि अविवाहित कन्याएं अगर सावन के हर सोमवार या महाशिवरात्रि का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करें तो उनके विवाह में आने वाली तमाम अड़चनें दूर हो जाती हैं और उनको सुयोग्य वर मिलता है।
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सावन के सोमवार व शिवरात्रि पर इनका महत्व:
सावन के हर सोमवार या शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर धतूरा और बेलपत्र चढ़ाने का खास महत्व होता है। इसके बाद वे उन्हें किसी मीठी चीज से भोग लगाती है। भोग लगाने के पश्चात् धुप दिप आदि जलाकर उनकी पूजा अर्चना करती है और शिव जी की आरती जाती है। इस दिन उपवास रखने का बेहद ख़ास महत्व होता है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के आसान उपाय-
– ‘ॐ नमः शिवाय:’ पंचतत्वमक मंत्र है इसे शिव पंचक्षरी मंत्र कहते हैं। इस पंचक्षरी मंत्र के जाप से ही मनुष्य संपूर्ण सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है।भगवान शिव का निरंतर चिंतन करते हुए इस मंत्र का जाप करें।
– व्रती दिनभर शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय:’ का जाप करें तथा पूरा दिन निराहार रहें। रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।
– शिवपुराण में रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए। रात को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर व्रती का धर्म माना गया है।
– सावन सोमवार व श्री महाशिवरात्रि व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। स्नान, वस्त्र, धूप, पुष्प और फलों के अर्पण करें। इसलिए इस दिन उपवास करना अति उत्तम कर्म है।
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भगवान शिव को दूध, दही, शहद, सफेद पुष्प, सफेद कमल पुष्पों के साथ ही भांग, धतूरा और बिल्व पत्र अति प्रिय हैं। इन मंत्रों का जाप करें-‘ओम नम: शिवाय ‘, ‘ओम सद्योजाताय नम:’, ‘ओम वामदेवाय नम:’, ‘ओम अघोराय नम:’, ‘ओम ईशानाय नम:’, ‘ओम तत्पुरुषाय नम:’। अर्घ्य देने के लिए करें ‘गौरीवल्लभ देवेश, सर्पाय शशिशेखर, वर्षपापविशुद्धयर्थमर्ध्यो मे गृह्यताम तत:’ मंत्र का जाप।
सावन सोमवार को शिव चालीसा का पाठ करें। इसके अतिरिक्त पूजा की प्रत्येक वस्तु को भगवान को अर्पित करते समय उससे सम्बन्धित मंत्र का भी उच्चारण करें। प्रत्येक प्रहर की पूजा का सामान अलग से होना चाहिए।
ये चढ़ाएं और ये न चढ़ाएं भगवान भोलेनाथ पर…
– केसर, चीनी, इत्र, दूध, दही, घी, चंदन, शहद, भांग,सफेद पुष्प, धतूरा और बिल्व पत्र।
– जल: ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
– बिल्व पत्र के तीनों पत्ते पूरे होने चाहिएं, खंडित पत्र कभी न चढ़ाएं।
– चावल सफेद रंग के साबुत होने चाहिये, टूटे हुए चावलों ना चढ़ायें।
– फूल ताजे ही चढ़ायें, बासी एवं मुरझाए हुए न हों।
– शिवलिंग पर लाल रंग, केतकी एवं केवड़े के पुष्प अर्पित नहीं किए जाते।
– भगवान शिव पर कुमकुम और रोली का अर्पण भी निषेध है।
ऐसे पहुंचे
भोजपुर से करीब 28 कि.मी. की दूरी पर भोपाल एयरपोर्ट है। यहां से हवाई मार्ग द्वारा पहुंच सकते हैं और भोजपुर से बस या निजी वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त भोजेश्वर मंदिर रेल मार्ग और सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है।