पूरे उत्तर भारत में हैं ओरछा के राम महोत्सव का विशेष स्थान
ओरछा का रामराजा मंदिर भगवान राम, जानकी की मूल प्रतिमाओं के लिए उत्तर भारत मे विशेष स्थान रखता है। इसी कारण यहां प्रतिवर्ष औसतन पांच लाख से अधिक धर्म जिज्ञासु स्वदेशी पर्यटक आते हैं और लगभग बीस हजार से अधिक विदेशी पर्यटक ओरछा की पुरातात्विक महत्व के खूबसूरत महलों, विशाल किले, शीश महल, जहांगीर महल, रायप्रवीण महल, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, बेतवा नदी के तट पर स्थित छतरियों और नदी किनारे के जंगल मे घूमने वाले जानवरों की अटखेलियां सहित अनेक ऐतिहासिक इमारतों को निहारने के लिए प्रतिवर्ष आते हैं।
ओरछा के रामराजा मंदिर में जडे शिलालेख के अनुसार भगवान श्री रामराजा सरकार को ओरछा की महारानी गणेश कुंअर चैत शुक्ल नवमी सोमवार वि.स. संवत 1631 अर्थात सोमवार सन् 1574 में अयोध्या से ओरछा तक पुख्य-पुख्य नक्षत्र के आठ माह 28 दिनों तक पैदल चलकर लाई थी और सोलह श्रृंगार कर उन्हें अपने रानीमहल मे विराजमान करा दिया था। ओरछा सहित उत्तर भारत मे प्रचलित जनश्रुति और अनेक धार्मिक पुस्तकों में लिखे अनुसार सतयुगी राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम का विवाह पश्चात राजतिलक नहीं हो पाया था और उन्हें वनगमन करना पडा था। उनके वियोग मे उनके पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो गई थी। उत्तर भारत के धार्मिक क्षेत्रों सहित साधुसंत समाज मे ऐसी मान्यता है कि ओरछा के तत्कालीन शासक महाराज मधुकर शाह को राजा दशरथ और उनकी पत्नी महारानी गणेश कुंअर को महारानी कौशल्या के रूप में मान्यता प्राप्त है।
ओरछा के राजा ने भगवान राम को किया था अपना राज्य भेंट
विवाह पंचमी के दिन रीति-रिवाज अनुसार सम्पूर्ण वैभब के साथ उनका विवाह करने पश्चात ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकरशाह ने, उनकी पत्नी द्वारा दिए गये वचन का पालन करते हुए उनका राजतिलक कर दिया था। बुंदेलखंड में ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकरशाह को भगवान श्रीराम के पिता और महारानी गणेश कुंअर को मॉं का दर्जा प्राप्त है। शास्त्रोक्ति के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पिता महाराज दशरथ का वचन घर्म निभाने के दौरान निधन हो गया था और उनका वहां राजतिलक नहीं हो सका था। तब ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकर शाह और महारानी गणेश कुंअर ने माता-पिता होने का धर्म निभाते हुए ओरछा में भगवान श्रीराम का राजतिलक कर पिता होने का दायित्व पूरा कर ओरछा नगरी को राजतिलक में भेट कर दी थी और तभी से उनके वंशज इस परम्परा को निभाते चले आ रहे हैं।
हर वर्ष दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर
राजतिलक करने के पश्चात भगवान श्रीराम को ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकर शाह अपना राज्य सौंप दिया था और तभी से भगवान श्रीराम ओरछा के राजा हैं और रामराजा कहलाते हैं। 444 वर्ष प्राचीन परम्परा के अनुसार भगवान श्रीराम को प्रतिदिन सुबह और शाम सशस्त्र बल द्वारा उन्हें ‘‘गार्ड आफ ऑनर‘’ देने की परम्परा का पालन आज भी राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है। रामनवमी और विवाह पंचमी के तीन दिनों तक के लिए भगवान श्रीराम प्रभु और सीता सिंहासन को छोडकर दालान मे झूला पर बिराजमान होकर सामान्य लोगों के लिए आसानी से दर्शन देते हैं और इन्हीं तीन दिन सुबह पांच बजे मंगला आरती में हजारों लोग आते हैं।
देश के सभी मंदिरो से इतर रामराजा मंदिर से प्रतिदिन सुबह और शाम की आरती के बाद दर्शनार्थी को भगवान के प्रसाद के रूप मे पान का बीडा और इत्र की कली वितरित किए जाने की परम्परा आदिकाल से निभाई जा रही है। पन्द्रहवीं शताव्दी मे निर्मित इस मंदिर की चौखट मे जडे शिलालेख मे लिखा है ‘मधुकरशाह महाराज की रानी कुंअर गनेश’ अवधपुरी से ओरछा लायीं कुंअर गनेश‘’ लेख के विवरण अनुसार वि.सं. 1630 श्रावण शुक्ल पंचमी के पुख्य नक्षत्र मे महारानी अवधपुरी से रवाना हुई और चैत शुक्ल नवमी वि.स. संवत 1631 अर्थात सोमवार सन् 1574 मे ओरछा पहुंचीं। उनकी टोली में महिलाओ के साथ साधु संतों के साथ होने का भी उल्लेख है।
महारानी लेकर आई थी भगवान राम, जानकी और लक्ष्मणजी को
एक अन्य किवंदती के अनुसार महाराज मधुकरशाह कृष्णभक्त थे और महारानी कुंअर गनेश रामभक्त थी। एक दिन रानी और राजा के बीच अपने दो आराध्य देव की प्रशंसा को लेकर तकरार हुई। राजा ने महारानी कुंअर गनेश को चुनौती देते हुए कहा कि अगर अपने आराध्यदेव की इतनी भक्त हो तो अपने राम को अयोध्या जाकर ले क्यों नहीं आती। उन्होंने अपने पति से अपने इष्ट देव को लेकर आने का प्रण किया और कहा कि अगर वह अपने इष्ट देव को लेकर आने मे सफल नहीं हुई तो जिंदा वापस नहीं आएंगी।
इसके बाद आषाढ़
कृष्ण 12 वि.स. 1630 को महारानी अयोध्या चली गई। महारानी अयोध्या में सरयू नदी के किनारे तपास्या करने बैठ गई। कई महीने की तपस्या के बाद जब भगवान राम के दर्शन महारानी को नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगाकर प्राण देने का प्रयास किया। तभी एक अत्यन्त वृद्ध साधु महात्मा ने आकर महारानी को बचाया और आत्महत्या करने का कारण पूछा। महारानी कुंअर गनेश ने अपने पति को दिए बचन से अवगत कराया और मंशा पूरी नहीं होने पर अपने प्राण देने की बात कहते हुए विलख विलख कर रोने लगी। वृद्ध व्यक्ति महारानी कुंअर गनेश को अपने साथ ले गया और (रामजन्म भूमि से निकालकर गुप्त स्थान पर सुरक्षित रखी बाबर के आक्रमण के पूर्व) अयोध्या के सरयू नदी के किलाधाट के तलघर से रामजन्म भूमि से लाकर सुरक्षित रखीं भगवान राम, जानकी और लक्ष्मण की प्रतिमाएं महारानी कुंअर गनेश को सौंप दी।
भगवान राम को दिए थे महारानी ने पांच वचन
इसके बाद महारानी सरयू नदी मे स्नान करने गई तो भगवान श्रीराम ने उनसे पांच वचन लिए। भगवान ने कहा कि अयोध्या से ओरछा सिर्फ पुष्य नक्षत्र में पैदल, साधु संतों की टोली के साथ चलूंगा और जब फिर पुष्य नक्षत्र शुरू होगा तभी फिर आगे चलूंगा और जहां एक बार बैठा दिया, बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूगां और जहां रहूंगा, राजा के रूप मे रहूंगा और वहां मेरा ही राज रहेगा। दिन में ओरछा और रात्रि अयोध्या मे वास करूंगा। जब महारानी कुंअर गनेश ने पांचों वचनों पर अपनी सहमति दे दी, उसके बाद महारानी कुंअर गनेश ने भगवान को अपनी गोद मे बैठाकर साधु संतो की टोली के साथ भजन-कीर्तन गाते अयोध्या से पुख्य नक्षत्र मे चलीं और आठ माह 28 दिनों तक के सिर्फ पुष्य नक्षत्र मे पैदल चलकर ओरछा पहुंची। तभी से भगवान श्रीराम, जानकी जी और लक्ष्मन जी की मूल प्रतिमाएं ओरछा के रामराजा मंदिर मे विराजमान हैं।
भगवान श्रीराम को दिये गए वचनों के अनुरूप ओरछा के रामराजा मंदिर की वास्तुकला और नक्शे के समान ही राजा मधुकरशाह ने अयोध्या मे कनक भवन मंदिर और नेपाल के जनकपुर मे नोलखा मंदिर का निर्माण कराया था। इन मंदिरों की देखभाल और सेवा के लिये कुछ गांव खरीदे गए थे और उनकी मालगुजारी तथा आय मंदिर को भेंट की जाती थी। अयोध्या के कनक भवन मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आज भी टीकमगढ़ के पूर्वशासक मधुकरशाह द्वितीय हैं। उत्तर भारत के मंदिरो मे ‘‘रामराजा मंदिर ओरछा‘’ देश के अत्याधिक धनी मंदिरों मे विख्यात है। प्राचीन समय अपनी स्थापना से अब तक भगवान को भेट किए गए अनेक तरह के सोने, चांदी के रत्नों से जड़े हुए सैंकडों आभूषण मंदिर में विशाल चार बक्सों मे अकूत सम्पत्ति के रूप में जमा हैं।