यह भी मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से पांच गाय उतरीं। कहा जाता है कि इस अवतार से छह माह पहले ही भादवी छठ पर इसी स्थान पर एक अन्य सुरंग से देवजी के घोड़े लीलाधर और उसके पास की सुरंग से नाग वासक का अवतार हो चुका था। जिस जगह कमल का फूल निकला, वहां अनंत सुरंग है। यहीं पर भगवान देवनारायण की मूर्ति है और मंदिर में अखंड ज्योत है। देवजी की तीन रानियों में से एक पीपलदे धारा के परमार राजा की बेटी थी। जबकि दो अन्य रानियां नागकन्या और दैत्यकन्या थीं।
मंदिर से जुड़े रहस्यः श्री देव नारायण मंदिर से कई रहस्य जुड़े हैं, जिसका आज तक जवाब लोगों को नहीं मिल पाया है। उन्हीं में से एक है मानव निर्मित वस्तुओं से दूर गुफा। बताते हैं कि प्राकृतिक चट्टान की छत वाली गुफा में कोई विद्युत उपकरण काम नहीं करता। वहीं मालासेरी डूंगरी के पत्थर का दुनिया के दूसरी जगहों पर मिलने वाले पत्थरों से कोई मिलान नहीं होता। हालांकि कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि यहां भूकंप आने से ये पत्थर धरती से निकले होंगे।
यहां की एक मान्यता है कि यहां हर रोज नाग वासक दूध पीने आते हैं। इसके लिए उन्हें देसी गाय का दूध रखा जाता है। यह भी कहा जाता है कि भाग्यशाली भक्तों को वासक दर्शन भी देते हैं। यहां सैकड़ों साल से गुर्जर समाज के पोसवाल गोत्र के भोपाजी पूजा करते आ रहे हैं, जिसमें हेमराज पोसवाल सक्रिय पुजारी हैं। सावन और भादव महीने में लाखों लोग झंडा लेकर पूजा करने आते हैं। यहां 12 महीने 24 घंटे भंडारा चलता है और गुर्जर समाज की आस्था का बड़ा केंद्र है।
मंगल आरती प्रातः 4 बजे
सूर्योदय आरती प्रातः 8 बजे
श्रृंगार आरती दोपहर 1 बजे
गोधूलि आरती शाम 7 बजे