मान्यता है कि आल्हा ने यहां 12 वर्ष तपस्या की थी और आल्हा ऊदल भाइयों ने ही इस मंदिर की खोज की थी। वे यहां की माता को माई कहकर पुकारते थे। इसलिए यहां की माता को शारदा माई कहा जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां आदिशंकराचार्य ने यहां सर्वप्रथम पूजा की थी और यहां 559 वि. में मूर्ति स्थापना की गई।
किंवदंतीः मंदिर को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियां लोगों में प्रचलित हैं। मान्यता है कि शाम की आरती के बाद जब पुजारी मंदिर के द्वार बंद कर लौट जाते हैं तो मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। लोगों का मानना है कि यह पूजा सैकड़ों वर्षों पहले रहे इलाके की एक रियासत के योद्धा आल्हा करते हैं। अक्सर सुबह की आरती भी वे ही करते हैं।
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मंदिर के एक पुजारी का कहना है कि मंदिर में मां का पहला श्रृंगार आल्हा करते हैं। जब ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के द्वार खोले जाते हैं तो यहां पूजा हुई मिलती है। उनका कहना है इस रहस्य का पता लगाने वैज्ञानिकों की टीम भी पहुंची थी, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
मंदिर के एक पुजारी का कहना है कि मंदिर में मां का पहला श्रृंगार आल्हा करते हैं। जब ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के द्वार खोले जाते हैं तो यहां पूजा हुई मिलती है। उनका कहना है इस रहस्य का पता लगाने वैज्ञानिकों की टीम भी पहुंची थी, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
आल्हा के बारे में जानेंः दरअसल, बुंदेलखंड के महोबा में एक परमार रियासत थी, आल्हा और ऊदल नाम के दो भाई इनके सामंत थे। ये दोनों वीर और प्रतापी योद्धा थे। कालिंजर के परमार राजा के राज्य में एक कवि थे जगनिक, इन्होंने आल्हा खंड नाम का काव्य लिखा था। इसमें दोनों भाइयों की वीरता की 52 कहानियां लिखी गईं हैं। इसके अनुसार इन्होंने आखिरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ी थी। कहा जाता है कि इस लड़ाई में पृथ्वीराज हार गए थे, लेकिन गुरु गोरखनाथ के आदेश पर इन्होंने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया। इसके बाद इन्हें वैराग्य हो गया और इन्होंने संन्यास ले लिया।
मंदिर क्यों सुर्खियों मेंः भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने 24 फरवरी 2023 को इस मंदिर में पूजा अर्चना की। इसलिए यह मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है।