माता भद्रकाली का यह धाम बागेश्वर जनपद में महाकाली के स्थानए कांडा से करीब 15 और जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी की दूरी पर सानिउडियार होते हुए बांश पटानसेशेराराघाट निकालने वाली सड़क पर भद्रकाली नाम के गांव में स्थित है। यह स्थान इतना मनोरम है कि इसका वर्णन करना वास्तव में बेहद कठिन है…
कहा जाता है, इस मंदिर की पूजा खासतौर पर नाग कन्याएं करती हैं। शाण्डिल्य ऋषि के प्रसंग में श्री मूल नारायण की कन्या ने अपनी सखियों के साथ मिलकर इस स्थान की खोज की। भद्रपुर में ही कालिय नाग के पुत्र भद्रनाग का वास कहा जाता है। भद्रकाली इनकी ईष्ट है।
माता भद्रकाली का प्राचीन मंदिर करीब 200 मीटर की चौड़ाई के एक बड़े भूखंड पर अकल्पनीय सी स्थिति में स्थित है। इस भूखंड के नीचे भद्रेश्वर नाम की सुरम्य पर्वतीय नदी 200 मीटर गुफा के भीतर बहती है।
भद्रकाली मंदिर की गुफा
गुफा में बहती नदी के बीच विशाल शक्ति कुंड कहा जाने वाला जल कुंड भी है, जबकि नदी के ऊपर पहले एक छोटी सी अन्य गुफा में भगवान शिव-लिंग स्वरूप में तथा उनके ठीक ऊपर भू.सतह में माता भद्रकाली माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली की तीन स्वयंभू प्राकृतिक पिंडियों के स्वरूप में विराजती हैं।
वहीं गुफा के निचले भाग के अंदर एक नदी बहती है. जिसे भद्रेश्वर नदी कहा जाता है यह पूरी नदी गुफा के अंदर ही बहती है. गुफा के मुहाने में जटाएँ बनी हुई हैं जिन पर से हर वक्त पानी टपकते रहता हैण् कुछ लोग ये जटाएँ माँ भद्रकाली की ही मानते हैं लेकिन कुछ के अनुसार ये जटाएँ भगवान शिव की हैं क्योंकि माँ भद्रकाली का जन्म भगवान शिव की जटाओं से ही हुआ है ऐसा माना जाता है।
यहां तीन सतहों पर तीनों लोकों के दर्शन एक साथ होते हैं। नीचे नदी के सतह पर पाताल लोक, बीच में शिव गुफा और ऊपर धरातल पर माता भद्रकाली के दर्शन एक साथ होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी…
माता भद्रकाली भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी यानी ईष्टदेवी थीं। कम ही लोग जानते हैं कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं अंचल में एक ऐसा ही दिव्य एवं अलौकिक विरला धाम मौजूद है, जहां माता सरस्वतीए लक्ष्मी और महाकाली एक साथ एक स्थान पर विराजती हैं।
इस स्थान को माता के 51 शक्तिपीठों में से भी एक माना जाता है। शिव पुराण में आये माता भद्रकाली के उल्लेख के आधार पर श्रद्धालुओं का मानना है कि महादेव शिव द्वारा आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जाये जाने के दौरान यहां दक्षकुमारी माता सती की मृत देह का दांया गुल्फ यानी घुटने से नीचे का हिस्सा गिरा था।
स्कंद पुराण के अनुसार मां भद्रकाली ने छरू माह तक इस जगह पर तपस्या की थी। उसी बीच एक बार इस नदी में काफ़ी बाढ़ आ गई और पानी एक विशाल शिला की वजह से रुक गया और इस जगह पर पानी भरने लगा तो मां भद्रकाली ने उस शिला को अपने पैरों से दूर फैंक दिया और बाढ़ का सारा पानी मां भद्रकाली के पैरों के बीच से निकल गयाण्इसी कारण यहां नदी गुफा के अंदर बहती है, चैत्र माह की अष्टमी को बागेश्वर भद्रकाली मंदिर में मेला लगता है।