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मंदिर

तांत्रिक क्रियाओं के लिए जाना जाता है यह हिन्दु तीर्थ, ये रहस्य जानकर हैरान हो जाएंगे आप

चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। इस लेख में पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है मंदिर से जुड़ी रोचक बातेंं और चमत्कारी किस्से…

Dec 30, 2022 / 01:07 pm

Sanjana Kumar

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Rahasyamayi Kamakhya Devi Mandir me

 

भोपाल। माता के 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी मंदिर माना जाता है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में आपको देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र नहीं दिखेगा। बल्कि इस मंदिर में एक कुंड बना है जो हमेशा फूलों से ढ़ंका रहता है। इस कुंड से हमेशा जल निकलता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। इस लेख में पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है मंदिर से जुड़ी रोचक बातेंं और चमत्कारी किस्से…

 

 

यह है मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, तब भगवान शिव ने माता सती का जला हुआ शरीर लेकर पूरे संसार में भ्रमण किया, जिसके कारण उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। तब स्थिति को संभालने के लिए श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर के अंग काटना शुरू किए और धरती पर जिन 52 स्थानों पर देवी सती के श्रीअंग गिरे, वहीं पर 52 शक्तिपीठों की स्थापना की गई। मान्यता है कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी, जिसके कारण यहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना की गई। ऐसी मान्यता है कि माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गई थी, जो आज भी मंदिर में विराजमान है और इससे आज भी माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है।

इसे माना जाता है महा शक्ति पीठ
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे, जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जो आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। इसलिए इसे महाशक्ति पीठ भी कहा जाता है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन, दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में यहां लाखों की संख्या में भक्तपहुचते हैं।

 

हैरान कर देंगे ये फैक्ट
1. हर साल यहां अम्बुबाची मेला लगाया जाता है। मेले के दौरान यहां पास ही में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो-गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

2. काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्तिको स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्री करती है।

3. मंदिर परिसर में जो भी भक्तअपनी मुराद लेकर आता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां की मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है।

4. माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर ही करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधु चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।

5. कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीने के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनों तक मंदिर के पट बंद रहते हैं। तीन दिन बाद दोबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते हैं।

6. इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर काला जादू भी किया जाता ह। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से पीडि़त है, तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात भी पा सकता है।

 

केवल परेशानी दूर करने की जाती है तांत्रिक क्रियाएं
कामाख्या मंदिर में काले जादू की पूजा के बारे में बहुत लंबे समय से मान्यता है। यहां आपको बता दें कि इस मंदिर में काला जादू करने जैसी तांत्रिक क्रियाओं को अंजाम नहीं दिया जाता। यहां केवल लोग काला जादू से छुटकारा पाने या उतारने के लिए ही आते हैं। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि 21वीं सदी में भी लोग काला जादू की समस्या से पीडि़त हैं। लोग ठीक होने के विश्वास और पूरी आस्था के साथ यहां आते हैं।

 

साधु और अघोरी करते हैं तंत्र-मंत्र
यहां काला जादू या वशीकरण हटाने की पूजा साधु और अघोरियों द्वारा की जाती है। साधु और अघोरी हमेशा मंदिर परिसर में रहते हैं। मान्यता है कि ये अघोरी दस महाविद्याएं जानते हैं। पूजा में काले जादू के कष्टों का समाधान शामिल है। देखकर आप कह सकते हैं कि कामाख्या देवी का मंदिर समस्या का इलाज करने के लिए है, न कि मानवता के खिलाफ विद्याओं का उपयोग करने के लिए। यहां के साधु लोगों को बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाने में लोगों की मदद करते हैं। कहा यह भी जाता है कि मंदिर के आसपास बैठने वाले साधुओं को भी सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त हैं।

 

किए जाते हैं अनुष्ठान
कामाख्या देवी मंदिर में होने वाले अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण हिस्सा है पशु बलि। यहां मान्यता है कि देवी कामाख्या को प्रसन्न करना है तो बकरे और भैंसों की बलि देनी होगी। लेकिन किसी भी मादा जानवर की बलि यहां नहीं दी जाती है।

की जाती है वशीकरण पूजा
यहां वशीकरण पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि वशीकरण आकर्षण की पूजा है, मूल रूप से पूजा एक सही इच्छा के साथ की जाती है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य होता है कि पति-पत्नी का रिश्ता बचा रहे। कामाख्या में वशीकरण दो लोगों के विचारों को एक जैसा बनाना है और उन्हें मानसिक रूप से सहज बनाने के उद्देश्य से ही वशीकरण की यह पूजा की जाती है। ताकि दंपति एक बेहतर जीवन व्यतीत कर सकें।

 

अनुष्ठान में लगत जाते हैं 4-5 घंटे
इस पूजा और हवन में कुल 4 से 5 घंटे का समय लगता है। काला जादू दूर करने के बाद भक्त ऐसी चीजें घर पर ले जा सकते हैं, जैसे कामिया सिंदूर, प्रसाद के साथ पूजा टोकरी, नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए एक ताबीज और पूजा के दौरान रखा जाने वाला रुद्राक्ष।

 

कैसे पहुंचें कामाख्या मंदिर

– सड़क मार्ग से : कामाख्या मंदिर सड़क मार्ग से शहर के कई केंद्रों से जुड़ा हुआ है। गुवाहाटी हवाई मार्ग, सड़कों और रेलवे के माध्यम से भी पहुंचा जा सकता है।

– रेल से : कामाख्या शहर का रेलवे नाम कामाख्या माता (कामाख्या रेलवे स्टेशन) है। यहां से आप आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

– हवाई मार्ग से : क्षेत्र के पास का हवाई अड्डा बोरचार्ड में गोपीनाथ बोरदोलोई हवाई अड्डा है, जो शहर के केंद्र से 14 किमी दूर है। मंदिर जाने के लिए कोलकाता से नियमित उड़ानें हैं।

https://youtu.be/ID4Hrn_EE9M

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