मान्यताः मान्यता है कि श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर वही जगह है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने क्रूर राजा कंस की जेल में खुद को प्रकट किया था। इसके बाद अपने पिता वासुदेव और मां देवकी को मुक्त कराया। मान्यता है कि इस अवतार का उद्देश्य बुराई को नष्ट करना, पुण्य की रक्षा करना और संसार में धर्म, नीति का राज्य स्थापित करना था।
ये भी पढ़ेंः Shani Transit 2023: इन राशियों पर बरसेगी शनि की कृपा, बदल जाएगा भाग्य श्रीकृष्ण जन्मभूमि का इतिहासः जानकारी के मुताबिक छठी शताब्दी ईपू मथुरा सुरसेन साम्राज्य की राजधानी बन गई थी। बाद में चौथी से दूसरी ई.पू. तक इस पर मौर्य साम्राज्य का शासन रहा। बाद में स्थानीय लोगों के शासन के बाद एक शताब्दी ई.पू. भारत-सिथियन लोगों ने जीत लिया था।
मंदिर के इतिहास की बात करें तो यहां पहला मंदिर 80-57 ई.पू. के बीच बनाया गया था। इससे संबंधित महाक्षत्रप सौदास के समय का शिलालेख मिला है। इसमें वसु नामक व्यक्ति द्वारा मंदिर बनवाए जाने की बात कही गई है। दूसरी बार 800 ई. में विक्रमादित्य के समय में यहां मंदिर बनवाया गया। बाद में 1017-18 के बीच मथुरा के कई मंदिरों समेत इस मंदिर को गजनी के महमूद ने तोड़ दिया था।
बाद में महाराजा विजयपाल के शासन के दौरान सन 1150 में जज्ज नाम के व्यक्ति ने फिर इस मंदिर को बनवाया। बाद में 16 वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने इसे तोड़ दिया। बाद में ओरछा शासक वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने इसके खंडहर पर पहले से विशाल और भव्य मंदिर बनवाया।
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ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669-70 में यहां बने केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर आधे हिस्से पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया। बाद में 1770 में मुगलों और मराठों के बीच गोवर्धन में युद्ध हुआ इसमें मराठों की जीत हुई और मराठाओं ने यहां फिर से मंदिर निर्माण कराया।
ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669-70 में यहां बने केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर आधे हिस्से पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया। बाद में 1770 में मुगलों और मराठों के बीच गोवर्धन में युद्ध हुआ इसमें मराठों की जीत हुई और मराठाओं ने यहां फिर से मंदिर निर्माण कराया।
धीरे-धीरे जर्जर हुए मंदिर को बाद में पं. मदन मोहन मालवीय के प्रयास से जीर्णोद्धार कराया गया। 1935 में इलाहाबाद उच्चन्यायालय ने यह 13.37 एकड़ जमीन बनारस के राजा कृष्णदास को सौंपने का आदेश दिया। 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था।
ये भी पढ़ेंः कोरोना का शनि कनेक्शन, कब आएगा पीक मथुरा के अन्य मंदिरः यहीं प्राचीन द्वारिकाधीश मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना के अन्य घाट, कंस का किला, योगमाया स्थान, बलदाऊजी मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली और रमण रेती आदि दर्शनीय स्थल हैं।
ऐसे पहुंचेः श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर दिल्ली के दक्षिण पूर्व से 145 किलोमीटर दूर स्थित है। आगरा से 58 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। यहां आने के लिए आप दिल्ली से आगरा फ्लाइट से और वहां से बस कैब से आ सकते हैं या दिल्ली से ट्रेन बस से सीधे भी आ सकते हैं। यह दक्षिण के हैदराबाद, बेंगालुरू और चेन्नई आदि स्थानों से दिल्ली की ओर आने वाली ट्रेन के रूट पर स्थित है।
ये भी पढ़ेंः Naye Sal Men Vrat Tyohar: इन त्योहारों के साथ मनेगा नए साल का जश्न, देखें जनवरी की लिस्ट क्या है विवादः शाही ईदगाह मस्जिद मथरा, शहर के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर परिसर से सटी हुई है। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह में इसी से जुड़ा जमीन का विवाद है। इसी से जुड़ी 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में पूरी जमीन और मंदिर के पास बनी मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।
वकील शैलेश दुबे ने बताया कि हिंदू सेना की तरफ से दायर याचिका पर सिविल जज सीनियर डिवीजन तृतीय सोनिका वर्मा ने शाही ईदगाह के विवादित स्थल का सर्वे करने का अमीन को आदेश दिया है और 20 जनवरी तक रिपोर्ट मांगी है।
इससे पहले 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ समझौता किया था। इसमें 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों को रहने देने की बात कही गई थी। अभी इसमें से 10.9 एकड़ जमीन कृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन ईदगाह मस्जिद के पास है।
समझौते के तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए कुछ जमीन छोड़ी थी और इसके बदले हिंदू पक्ष ने जमीन दूसरी जगह दी थी। अब हिंदू पक्ष पूरी जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।