लगभग 53 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मेला हर साल हिन्दू पंचांग के माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को शुरू होता है तथा महाशिवरात्रि को अपने चरम पर पहुंच कर समाप्त होता है। इसमें देश भर से, विशेष रूप से गुजरात तथा सीमावर्ती राजस्थान के मारवाड क्षेत्र, के हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस बार महाशिवरात्रि 13 फरवरी को है। महाशिवरात्रि की चंद्रविहिन रात्रि (अमावस्या की रात) को, जब ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने प्रलय से जुडा तांडव नृत्य किया था, उक्त मेले में एक विशेष महापूजा का आयोजन होता है।
आधी रात को शुरू होने वाली इस महापूजा से पूर्व नागा साधुओं की टोली सजी धजी हाथियों पर सवार होकर शंख बजाते हुए वहां पहुंचते हैं। माना जाता है कि नौ नाथों और 84 सिद्धों की भूमि गिरनार में इनके साथ ही भगवान शि शिवरात्रि ?ि पर स्वयं विराजमान होते हैं। मेले में कई तरह के पारंपरिक गीत और नृत्य भी देखने को मिलते हैं।
भवनाथ मेले से जुड़ी है यह कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब भगवान शिव और माता पार्वती गिरनार पर्वत के ऊपर से आकाशमार्ग से गुजर रहे थे तभी उनका दिव्य वस्त्र नीचे मृगी कुंड में गिर गया। आज तक इस जगह पर नागा साधु महाशिवरात्रि के मौके पर निकलने वाली उनकी शोभायात्रा से पहले इसमें स्नान करते हैं। राज्य के पर्यटन विभाग की सूचना के अनुसार भवनाथ मेला बेहद प्राचीन काल से आयोजित होता रहा है और इसकी शुरूआत के बारे में कोई आधिकारिक विवरण मौजूद नहीं है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब भगवान शिव और माता पार्वती गिरनार पर्वत के ऊपर से आकाशमार्ग से गुजर रहे थे तभी उनका दिव्य वस्त्र नीचे मृगी कुंड में गिर गया। आज तक इस जगह पर नागा साधु महाशिवरात्रि के मौके पर निकलने वाली उनकी शोभायात्रा से पहले इसमें स्नान करते हैं। राज्य के पर्यटन विभाग की सूचना के अनुसार भवनाथ मेला बेहद प्राचीन काल से आयोजित होता रहा है और इसकी शुरूआत के बारे में कोई आधिकारिक विवरण मौजूद नहीं है।
मेले में जुटने वाली भारी भीड के मद्देनजर सुरक्षा के व्यापक प्रबंध भी किये गये हैं। पूरे मेला क्षेत्र में 40 से अधिक स्थानों पर पुलिस की रावटियां लगायी गयी हैं जबकि पूरे मेला क्षेत्र पर नजर रखने के लिए 75 सीसीटीवी कैमरे भी लगाये गये हैं। इस मेले में आने से पहले कई श्रद्धालु गिरनार पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं।