कथाओं के अनुसार यह उज्जैन के शासक विक्रमादित्य के समय का है, जिसे महाराज ने 155 विक्रमी में श्रीयंत्र के अनुरूप बनवाया था। इस मंदिर का नवीनीकरण मराठा शासक पेशवा बाजीराव ने कराया था। बुधवार को बड़ी संख्या में यहां लोग पूजा अर्चना करने आते हैं, गणेश चतुर्थी के दिन तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है।
मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा खड़ी हुई और जमीन में आधी धंसी अवस्था में है। इससे आधी मूर्ति के ही दर्शन होते हैं। कहा जाता है यह स्वयंभू गणेश प्रतिमा है, इसीलिए यहां के प्रतिमा का प्रताप अन्य जगहों से ज्यादा माना जाता है। यहां अनेक तपस्वियों ने सिद्धि प्राप्त की है। मान्यता है कि यहां अपना दुखड़ा सुनाने आने वाले भक्त का संकट गणपति बप्पा हर लेते हैं। यह भी मान्यता है कि यहां उल्टा स्वास्तिक बनाने पर हर काम सिद्ध होता है।
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