छिन्नमस्ता माता पूजा का महत्वः वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन छिन्नमस्तिका जयंती मनाई जाती है। यह तिथि चार मई को पड़ रही है। कथाओं के अनुसार छिन्नमस्ता माता देवी काली का अद्वितीय रूप मानी जाती हैं। इन्हें जीवन हरने वाली माना जाता है तो जीवनदात्री भी माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त छिन्नमस्ता माता की पूजा करते हैं, उनको सभी कठिनाइयों से छुटकारा मिल जाता है।
इनकी पूजा से व्यक्ति में आध्यात्मिक, सामाजिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इनकी पूजा से भक्त संतान, कर्ज और यौन समस्याओं से छुटकारा पाते हैं। इच्छाओं की पूर्ति होती है, शत्रुओं पर विजय मिलती है और आर्थिक समृद्धि के भी द्वार खुलते हैं।
कैसे मनाई जाती है छिन्नमस्ता जयंतीः छिन्नमस्ता जयंती के दिन भक्त देवी छिन्नमस्तिका की आराधना करते हैं। इस दिन देवी का अवतार मानकर छोटी लड़कियों की पूजा की जाती है। मंदिरों में और पूजा स्थल पर कीर्तन और जागरण आयोजित किए जाते हैं।
छिन्नमस्तिका देवी की पूजा
1. छिन्नमस्तिका देवी जयंती पर भक्त सुबह जल्दी स्नान ध्यान करते हैं और साफ सुथरे वस्त्र पहनते हैं और कठोर उपवास रखते हैं।
2. इसे लिए भक्त वेदी बनता हैं और उस पर माता की मूर्ति रखते हैं । माता के सम्मुख अगरबत्ती और दीया जलाते हैं।
3. आमतौर पर छिन्नमस्ता मंदिरों में पास में ही भगवान शिव की मूर्ति होती है। यहां भक्त पहले शिव का अभिषेक करते हैं, फिर देवी मां की पूजा करते हैं।
4. इसके बाद प्रसाद, फूल, नारियल और माला अर्पित करते हैं।
5. देवी छिन्नमस्ता की आरती की जाती है और पवित्र मंत्रों का जाप किया जाता है।
6. आमंत्रितों और परिवार के सदस्यों के बीच प्रसाद बांटा जाता है, इस दिन दान पुण्य भी किया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवी पार्वती अपने 2 सहयोगियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रहीं थीं। मान्यता है कि इस स्नान के दौरान, देवी पार्वती समय की वास्तविक गिनती भूल गईं और उनके सहयोगियों को भी भूख लगने लगी। इधर, जब माता पार्वती (भवानी) को समय का एहसास हुआ तो उन्हें अपराधबोध होने लगा। इस पर उन्होंने खुद का गला काट लिया। तीन अलग-अलग खून की धाराएं निकल कर आईं। दो रक्त की धाराओं से उनके सहयोगियों ने अपनी भूख को संतुष्ट किया और तीसरी रक्त की धारा को देवी ने पीया । उस दिन के बाद से, उन्हें छिन्नमस्ता देवी के रूप में पूजा जाने लगा।
छिन्नमस्ता माता मंदिर झारखंड झारखंड के रजरप्पा में छिन्नमस्ता माता मंदिर है। यह मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से 80 किलोमीटर और रामगढ़ मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर है जो छह हजार साल पुराना माना जाता है, कई लोग इसे महाभारतकालीन मानते हैं।
यहां मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है। इसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा सिर है। शिलाखंड पर मां की तीन आंखें हैं। बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी नजर आती हैं, उनके पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। असम के बाद यह माता छिन्नमस्तिका का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। भैरवी भेड़ा और दामोदर नदी के संगम तट पर स्थित इस मंदिर में नवरात्रि में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
कार्तिक आमावस्या की रात यहां की रात रहस्यमयी नजर आती है। इस रात घने जंगलों, पहाड़ो और नदियों के बीच उठती आग की लपटों और धुएं और डरावनी आवाजें रोंगते खड़े कर देते हैं। इधर, मंदिर परिसर में रातभर भजन कीर्तन होता रहता है। कई साधक यहां जंगल में गुप्त साधना करते हैं।
कामाख्या मंदिर जैसी वास्तुकलाः रजरप्पा के मां छिन्नमस्तिके मंदिर में बड़े पैमाने पर विवाह भी होता है। राजपप्पा मंदिर की वास्तुकला असम के प्रसिद्ध कामख्या मंदिर के समान है। यहां मां काली के मंदिर के साथ भगवान सूर्य और भगवान शिवा के दस मंदिर हैं।