वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते हुए जगंल में अधर-उधर घूम रहे थे, तो भीम हिडिम्बा (Bhima Hidimba) से मिले और हिडिम्बा से उन्होंने शादी कर ली, जिससे उनके एक पुत्र हुआ घटोतक्च, घटोतक्च से बर्बरीक (barbareek- Khatu Shyam) हुआ।
दोनों ही पिता और पुत्र भीम की तरह अपनी ताकत और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक (Khatu Shyam) ने युद्ध देखने का निर्णय लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने जब उनसे पूछा वो युद्ध में किसकी तरफ हैं, तो उन्होंने (Khatu Shyam) कहा था कि वो पक्ष हारेगा वो उसकी ओर से लड़ेंगे। इसलिए उन्होंने आज भी हारे का सहारा कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे और उन्हें डर था कि कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक (Khatu Shyam ) को रोकने के लिए दान (Donation) की मांग की। दान में उन्होंने उनसे शीश मांग लिया। दान में बर्बरीक ने उनको शीश दे दिया, लेकिन आखिर तक उन्होंने युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की।
श्रीकृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध की जीत का श्रेय किसे जाता है। तब बर्बरीक (Khatu Shyam) ने कहा कि उन्हें जीत भगवान श्रीकृष्ण की वजह से मिली है। भगवान श्रीकृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न हुए और कलियुग में श्याम (Baba Khatu Shyam) के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया।