स्थानीय लोगों का कहना है कि मां अछूरू माता के अद्भुत दरबार में शामिल होने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। हाजिरी लगाते हैं, मां को अपनी फरियाद सुनाते हैं और साथ ही उनसे अपने कार्यों की पूर्ण करने की गुहार लगाते हैं। माता भी भक्तों को मनोकामना पूर्ण होने की आशीर्वाद देती हैं।
माता ने ऐसे दिए चरवाहे को दर्शन
अछरू माता मंदिर देश के उन चंदा देवी मंदिरों में से है, जहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के दरबार में पहुंच कर अपनी फरियाद सुनाते हैं और मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस स्थान पर मां के प्राकट्य की कहानी हैरतंगेज है। कहा जाता है कि लगभग 500 बरसों पूर्व यादव जाति का एक चरवाहा जिसका नाम अछरू था, जंगल में भैंसें चरा रहा था।
इसी दौरान इस घने जंगल में चरवाहे की भैंस गुम हो गई, कई दिन तक चरवाहा घने जंगल में अपनी भैंसों की खोज करता रहा। भैंस खोजते-खोजते चरवाहा प्यास से व्याकुल होने लगा। इस बीच चरवाहा इसी पहाड़ी के पास एक वृक्ष के नीचे छाया में बैठ गया तो माता ने उसे कुंड से निकल कर दर्शन दिए और उसे कुंड से जल ग्रहण करने की सलाह दी और उसकी भैंसों की जानकारी दी।
किंवदंती है कि कुंड में पानी पीने के बाद चरवाहे ने अपनी एक लाठी कुंड में डाली तो वह अंदर चली गई। इसके बाद वह हैरान रह गया फिर माता की बताई जगह पर पहुंचा और माता ने जिस स्थान पर उसकी भैंसे होने की जानकारी दी थी, उसी स्थान पर उसकी लाठी भी मिली। इस पर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, तभी से नित्य प्रतिदिन चरवाहा इस स्थान पर आकर मां की पूजा करने लगा।
धीरे-धीरे यह बात आसपास फैलने लगी और लोग इस स्थान पर पहुंच कर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए अर्जी लगाने लगे। मां कुंड से श्रद्धालुओं को जवाब देने लगी, और यह स्थान धीरे-धीरे देशभर में प्रसिद्ध हो गया और आज हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस स्थान पर पहुंचकर मां के दरबार में अपनी अर्जी लगाते हैं और मनोकामना पूरी करने की मां से विनती करते हैं, मां भी भक्तों को कुंड से जवाब देती हैं। बाद में भक्तों ने यहां मंदिर बनवाया।
मंदिर में होता है चमत्कार
वह स्थान जहां पर मां का कुंड है, एक पहाड़ी पर स्थित है और कुंड हमेशा जल्द से लबालब रहता है। कई बार बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखे की चपेट में आया लेकिन कुंड में सदैव ही जल भरा रहा। पहाड़ी पर यह स्थान होने के बावजूद भी कुंड का पानी कभी कम नहीं होता है। लोगों का कहना है कि मां दैवीय आपदाओं का भी संकेत देती हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है इस कुंड में जल कहां से आता है और प्रसाद कहां से आता है। इस बात की खोज कई बार लोगों ने करने की कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। लाखों लोगों की श्रद्धा इस स्थान से जुड़ी हुई है, लोग अपने कार्यों की अपेक्षा लेकर मां के दरबार में पहुंचते हैं और मां सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
यहां यह भी मान्यता प्रचलित है कि दक्ष प्रजापति ने जब अपना यज्ञ किया था और शिवजी का अपमान किया था, उस वक्त मां पार्वती की आंखों में आंसू आ गए थे और यह वही स्थान हैं, जहां पर आंसू गिरे थे। कहा जाता है कि यह स्थान पृथ्वी का मध्य स्थल है।
और भी हैं किस्सेः जब लाल हो गया कुंड का पानी
मंदिर से जुड़े कई किस्से लोग सुनाते हैं, लोगों का कहना है कि एक बार इस कुंड के आसपास की सफाई की जा रही थी, किसी ने लोहे की साग से कुंड के मुहाने पर लगी काई कुरेद कर साफ करने की कोशिश की, तब इस कुंड का पानी खून की तरह लाल हो गया था।
नवरात्रि पर लगता है मेला
मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस स्थान पर वर्षों पूर्व इस स्थान की खोज करने वाले मां अछरू मैया के अनन्य भक्त अछरू के परिवार के लोग ही मंदिर की पूजा करते हैं। लाखों भक्त प्रतिवर्ष श्रद्धा भक्ति भाव से मां के दरबार में पहुंचते हैं, चैत्र नवरात्रि एवं शारदीय नवरात्रि में यहां पर मेले का आयोजन होता है। बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।