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Krishna Temple: राजस्थान का एक ऐसा अनोखा मंदिर,जहां श्री कृष्ण के 10 स्वरूपों के होते हैं दर्शन

Krishna Temple क्या आपको पता है राजस्थान के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में जहां श्री कृष्ण के 10 स्वरूप के दर्शन होते हैं आइए जानते हैं..

जयपुरNov 24, 2024 / 11:41 am

Diksha Sharma

Krishna Temple

Krishna Temple: देश में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं और हर एक मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। लेकिन कुछ मंदिर राजस्थान में ऐसे भी है, जहां कृष्ण के 10 स्वरूप देखने को मिलते हैं। तो आइए जानते हैं..

कृष्ण मंदिर (Krishna Temple)

जन-जन के प्यारे श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा घर-घर में होती है। भक्त इन्हें प्यार से कृष्ण, कन्हैया, मोहन, गिरधर, गोविंद, लाला, लड्डू गोपाल, श्याम व अन्य नामों से पुकारते हैं। राजस्थान में भगवान श्री कृष्ण के कई बड़े मंदिर स्थापित है। जहां इनकी अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है। देश-दुनिया से भक्त इनका दर्शन करने राजस्थान आते हैं। तो आइए जानते हैं भगवान कृष्ण के अनोखे मंदिर के बारे में..

भगवान श्री कृष्ण का अनोखा मंदिर (A Unique Temple Of Krishna)

राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भगवान श्री कृष्ण का एक ऐसा एकलौता मंदिर है, जहां श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ 10 स्वरूप के दर्शन होते हैं। डूंगरपुर से 31 किलोमीटर दूर लीलवासा गांव में भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में भगवान श्री कृष्ण के 10 स्वरूप दिखते हैं। यहीं नहीं, पूरे वागड़ क्षेत्र में इसे स्वयंभू कृष्ण भगवान की प्रतिमा भी कहते हैं। लोगों का कहना है कि शिव मंदिरों में शिवलिंग स्वयंभू होते हैं पर, लीलवासा के गोपाल कृष्ण की प्रतिमा भी स्वयंभू है। क्योंकि यह प्रतिमा खुदाई के दौरान निकलती है।
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दस भुजाधारी प्रतिमा (Ten Armed Statue)

लीलवासा के श्री गोपाल धाम की कृष्ण भगवान की प्रतिमा एक ही पत्थर पर बनी हुई है। जो अद्भुत कारीगरी और शिल्पकला का नमूना है। कहा जाता है कि इस प्रतिमा में भगवान कृष्ण के कई स्वरूप देखने को मिलते हैं। जैसे सुदर्शनधारी वासुदेव, एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किए हुए व एक हाथ से कृपा बरसाते हुए श्रीकृष्ण देखने को मिल रहे हैं।
दस भुजाधारी इस प्रतिमा में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा, पद्म दंड के साथ अन्य दो हाथों से बांसुरी बजा रहे हैं। भगवान के चरणों में बछड़ों को दूध पिलाती गाय व गोपिकाओं की लघु प्रतिमा शामिल हैं। प्रतिमा पर संवत 191 फागण विधि अंकित है। वहीं एक अंक टूट चुका है। प्रतिमा को करीब 300 साल पुरानी बताई जा रही है। मंदिर का प्रथम निर्माण 12 दिसम्बर 1929 में मुहूर्त हुआ था।
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बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु (Devotees come in large numbers)

इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की यह स्वयंभू प्रतिमा देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। विशेषकर कृष्ण जन्माष्टमी पर पड़ोसी ज़िले उदयपुर, बांसवाड़ा और गुजरात राज्य से भी लोग यहां आते हैं। यहां के लोगों मानना है कि श्री कृष्ण के मंदिर में आए भक्तों की मुराद हमेशा पूरी होती है। इसके अलावा अन्य धार्मिक कार्यक्रम भी मंदिर में होते हैं।
डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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