सूरत

GOOD NEWS: गीर गाय के पालन ने बदल दी आदिवासी महिलाओं की तकदीर

-संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली मेंं सब्सिडी पर 600 से अधिक महिला लाभार्थियों ने ली गायें

सूरतAug 23, 2021 / 05:13 pm

Dinesh Bhardwaj

GOOD NEWS: गीर गाय के पालन ने बदल दी आदिवासी महिलाओं की तकदीर

सिलवासा. पशुपालन विभाग द्वारा प्रदत्त गीर गायों से गरीब, विधवा व असहाय आदिवासी महिलाओं की तकदीर बदल गई हैं। गांवों में गीर गाय से महिलाएं अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। विभाग ने 50 प्रतिशत सब्सिडी पर 600 से अधिक लाभार्थियों को गीर गाय उपलब्ध कराई हैं। नतीजन, महिला सशक्तिकरण के साथ लोगों को गीर गाय का दूध सस्ती दर पर मिलने लगा है। गीर गाय के दूध की दर 60 रुपए प्रति किलो निर्धारित है।
संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली मेंं औद्योगिक इकाईयों के चलते दूध की मांग अधिक है। यहां पड़़ौसी राज्यों से सिंथेटिक पैकेटबंद दूध 50 से 60 रुपए लीटर के भाव से आयात हो रहा है। अधिकारियों ने बताया कि आदिवासी महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में सरकार द्वारा संकलित डेयरी विकास योजना (आईडीडीपी) सराहनीय कदम है। इसमेंं स्टाब्लिशमेंट ऑफ स्माल स्केल डेयरी यूनिट के तहत रांधा, किलवणी, सुरंगी, खानवेल, दपाड़ा, खेरड़ी व आंबोली में 600 से अधिक किसानों को सब्सिडी पर गीर गाय दी गई है। घर के पास ही दूध खरीदने के लिए विभाग ने बिक्री केन्द्र भी खोल दिए हैं। यह दूध बाद में बोतल में बंद करके उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाता है। रांधा निवासी कुंसीबेन वरठा ने बताया कि योजना के तहत उन्होंने 10 गायें खरीदी थी। बछिया जन्म के बाद इनकी संख्या 20 हो गई है। एक गाय प्रतिदिन 7-8 किलो दूध देती हैं, जिससे घर बैठे प्रतिदिन 1500 से 2000 रुपए तक आमदनी हो जाती है। वेटेनरी डॉक्टरों के अनुसार गीर गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन, 6 विटामिन, 21 तरह के एमिनो एसिड, 11 चर्बीयुक्त अम्ल, 25 प्रकार के खनिज, दो तरह की शर्करा होती है। इसके दूध में सोना, तांबा, लोहा, कैल्शियम, आयोडीन, फ्लोरिन, सिलिकॉन भी मिले हैं। बच्चे व गर्भवती महिलाओं के लिए गीर का दूध अमृत समान है। गीर गाय का दूध आसानी से बिक जाता है।
-देसी गायों की हालत बदतर


वर्तमान अर्थ युग में पशुपालन किसानों को महंगा साबित हो रहा है। किसान देसी प्रजाति की गाय व बैलों को आवारा छोड़कर पिंड छुड़ा रहे हैं। घास व चारा महंगा होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। कृषि जुताई-बुवाई में बैलों की जगह टे्रक्टरो ने ले ली है। ट्रेक्टर से खेती से कम खर्च के साथ श्रम की बचत होती है। लावारिस छोड़ी गई देशी प्रजातियों की गायें सड़क, सार्वजनिक स्थल, बाजार एवं गांव की गलियारों में जीवन व्यतीत करती हैं।

Hindi News / Surat / GOOD NEWS: गीर गाय के पालन ने बदल दी आदिवासी महिलाओं की तकदीर

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.