-देसी गायों की हालत बदतर
वर्तमान अर्थ युग में पशुपालन किसानों को महंगा साबित हो रहा है। किसान देसी प्रजाति की गाय व बैलों को आवारा छोड़कर पिंड छुड़ा रहे हैं। घास व चारा महंगा होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। कृषि जुताई-बुवाई में बैलों की जगह टे्रक्टरो ने ले ली है। ट्रेक्टर से खेती से कम खर्च के साथ श्रम की बचत होती है। लावारिस छोड़ी गई देशी प्रजातियों की गायें सड़क, सार्वजनिक स्थल, बाजार एवं गांव की गलियारों में जीवन व्यतीत करती हैं।
वर्तमान अर्थ युग में पशुपालन किसानों को महंगा साबित हो रहा है। किसान देसी प्रजाति की गाय व बैलों को आवारा छोड़कर पिंड छुड़ा रहे हैं। घास व चारा महंगा होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। कृषि जुताई-बुवाई में बैलों की जगह टे्रक्टरो ने ले ली है। ट्रेक्टर से खेती से कम खर्च के साथ श्रम की बचत होती है। लावारिस छोड़ी गई देशी प्रजातियों की गायें सड़क, सार्वजनिक स्थल, बाजार एवं गांव की गलियारों में जीवन व्यतीत करती हैं।