सूरत. कोरोना संक्रमण को लेकर वैश्विक स्तर पर हो रही मोर्चेबंदी के बीच गलवान घाटी में भारतीय सेना के साथ हुई भिड़ंत ने कारोबारी हलकों में चीन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कोरोना के नुकसान की भरपाई के लिए दक्षिण गुजरात में जो चीनी एजेंट सक्रिय हुए थे उनके लिए ताजा घटनाक्रम के बाद अब बाजार में जाना भी मुश्किल हो गया है। शहर समेत दक्षिण गुजरात के कारोबारियों में भी चीन के खिलाफ माहौल बन रहा है।
कम हो रही निर्भरता
केमिकल, फार्मा, टैक्सटाइल, प्लास्टिक और डायमंड उद्योग दक्षिण गुजरात की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनमें टैक्सटाइल प्रोसेसिंग, प्लास्टिक, केमिकल और फार्मा सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले केमिकल और रॉ मटीरियल का बड़ा हिस्सा चीन से आता है। इनमें अधिकांश केमिकल और रॉ मटीरियल अब भारत में भी बनने लगा है। कोरोना के बाद जब बाजार खुले तो चीन के एजेंटों ने उद्यमियों के चक्कर काटने शुरू किए थे।बदलना पड़ेगा नजरिया
चीन कारोबारी सहयोगी नहीं दुश्मन देश की तरह व्यवहार कर रहा है। हमें भी अपना नजरिया बदलना पड़ेगा और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढऩा होगा। चीन के कारोबारी प्रतिस्पर्धी देशों से हम जरूरत का सामान मंगाकर अपनी जरूरत पूरी करेंगे।
गिरीश देसाई, पूर्व प्रमुख, सरीगाम इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, वापी
नाराजगी को ऊर्जा में बदलने की जरूरत
लददाख में हुई घटना के बाद आम आदमी के साथ ही कारोबारी लोगों में भी खासी नाराजगी है। इस नाराजगी को ऊर्जा में बदलने की जरूरत है। हम कई मोर्चों पर धीरे-धीरे आत्मनिर्भर हो रहे हैं, इसे और गति मिलेगी।
संजय सरावगी, उद्यमी, सूरत