सूरत. कोरोना संक्रमण के साए में बीते सात महीनों ने आम आदमी ही नहीं पशु-पक्षियों और वन्य जीवों के व्यवहार पर भी असर डाला है। लॉकडाउन और अनलॉक-1.0 में उद्योग-धंधे बंद रहे तो आबोहवा साफ हुई, नदियों में लुप्त हुए जलीय जीव फिर दिखने लगे। लगातार घर में कैद रहकर और फिर बाजार में मंदी की मार से आदमी चिड़चिड़ा हुआ। इधर आदमी ने अपना धैर्य खोया, वन्य जीवों की आक्रामकता में कमी आई। खासकर कैप्टिव कंडीशन में वन्य जीवों में यह बदलाव ज्यादा दिखा।
मछलियां भी हैं शांत
भीड़ से मुक्ति मिली तो यह बदलाव एक्वेरियम की मछलियों में भी दिखा। लोगों की भीड़ से घिरी मछलियां बेचैन दौड़ती-फिरती थीं। लोगों की आवाजाही थमी तो इनकी दिनचर्या भी बदल गई। उनकी बेचैनी शांत हुई तो निरर्थक भागदौड़ पर विराम लग गया। यह बताता है कि लोगों की भीड़ किस तरह उनके मन को परेशान करती थी।शोर करता था परेशान
जू में बड़ी संख्या में लोग आते थे तो जानवरों के बाड़े के बाहर जमघट लगता था। लोगों का शोर वन्य जीवों को परेशान करता था। हम भी जानवरों को डिस्प्ले के लिए बाहर करते थे। इसलिए जानवर कई बार इरीटेट हो जाते थे। बीते सात महीने से मानव का दखल बंद हुआ तो उनके व्यवहार में बदलाव भी दिख रहा है।डॉ. राजेश पटेल, जू सुपरिटेंडेंट, सूरत
हाइना के व्यवहार ने की पुष्टि
सूरत प्राणी संग्रहालय में हाइना का मामला वन्य जीवों में आए बदलाव को समझने के लिए केस स्टडी साबित हो सकता है। हाइना ने मई 2019 में एक बच्चे को जन्म दिया था। लोगों के शोर और भीड़ के दबाव ने उसे इतना आक्रोशित कर दिया था कि उसने जन्म देने के एक दिन बाद ही बच्चे को मार दिया था। कोरोनाकाल में जब आम आदमी देखने को भी नहीं मिल रहा था, हाइना ने एक बार फिर प्रसव किया और दो बच्चों को जन्म दिया। मातृत्व के बाद बीते वर्ष के मुकाबले हाइना इस बार अपेक्षाकृत ज्यादा शांत रही और दोनों बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताया। मां और दोनों बच्चे जू में अठखेलियां कर रहे हैं। यह बताता है कि भीड़ के दबाव और अनावश्यक शोर उनकी निजी जिंदगी में खलल डाल रहा था। यह बदलाव आक्रामक व्यवहार के लिए पहचानी जाने वाली बाघिन शाम्भवी और तेंदुआ मायावती में भी देखने को मिल रहा है। जू में रह रहे अन्य वन्यजीव भी इन दिनों दबावमुक्त हैं।