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यह प्रकरण उस समय प्रकाश में आया जब वादी मुकदमा ने अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) के न्यायालय में दाखिल एक मिथ्या जांच रिपोर्ट का अवलोकन किया। यह रिपोर्ट क्षेत्रीय लेखपाल सुशील तिवारी और कानूनगो रमाशंकर मिश्रा द्वारा प्रस्तुत की गई थी। वादी ने आरोप लगाया कि पूर्व सहायक कोषाधिकारी आत्माराम मिश्रा के दबाव और प्रलोभन के चलते यह रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। वादी ने न्यायालय के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई, जिसके बाद न्यायालय ने प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एसडीएम सदर विपिन द्विवेदी को 11 दिसंबर, 2024 को पत्रांक संख्या 328 जारी कर 16 दिसंबर, 2024 तक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। यह भी पढ़ें
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जांच रिपोर्ट में देरीनिर्धारित तिथि तक रिपोर्ट न आने पर अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) ने 18 दिसंबर, 2024 को पत्रांक संख्या 332 के माध्यम से एसडीएम सदर को स्मरण पत्र भेजा। इस पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया कि जांच रिपोर्ट 21 दिसंबर से पहले प्रस्तुत की जाए और इसमें किसी भी प्रकार की शिथिलता न हो। हालांकि एसडीएम सदर द्वारा एडीएम (एफआर) के आदेशों को अनदेखा कर दिया गया, और रिपोर्ट समय पर पेश नहीं की गई। यह देरी प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है।
प्रशासनिक तंत्र पर सवाल
इस घटना ने प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में छत्रप बनने का आरोप लग रहा है। वादी ने आरोप लगाया कि यह जांच रिपोर्ट न्यायालय को गुमराह करने और सरकारी कार्य में बाधा डालने के उद्देश्य से तैयार की गई थी।
इस घटना ने प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में छत्रप बनने का आरोप लग रहा है। वादी ने आरोप लगाया कि यह जांच रिपोर्ट न्यायालय को गुमराह करने और सरकारी कार्य में बाधा डालने के उद्देश्य से तैयार की गई थी।
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प्रशासनिक कार्रवाई: इस मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, लेकिन वादी की आपत्ति और न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद है कि दोषी कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। भ्रष्टाचार का बढ़ता प्रभाव
यह मामला उन घटनाओं में से एक है, जो दिखाता है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र के हर स्तर पर जड़ें जमा चुका है। लेखपाल और कानूनगो जैसे पदों पर बैठे कर्मचारी अपने प्रभाव और वरिष्ठ अधिकारियों की शिथिलता का लाभ उठाकर न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।
यह मामला उन घटनाओं में से एक है, जो दिखाता है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र के हर स्तर पर जड़ें जमा चुका है। लेखपाल और कानूनगो जैसे पदों पर बैठे कर्मचारी अपने प्रभाव और वरिष्ठ अधिकारियों की शिथिलता का लाभ उठाकर न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।
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सरकार की सख्ती की जरूरतइस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को अपनी जीरो टॉलरेंस नीति को और सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। अधीनस्थ कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच जवाबदेही तय करना और जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना अत्यंत आवश्यक है।