बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए जिले की धरती पर एक साथ 10 लाख सीड बम गिराकर प्रदूषण कम करने की मुक्कमल तैयारी हो रही है। इस तैयारी के लिए जिला प्रशासन युद्ध स्तर पर जुट गया है। अभी शून्य बजट पर इन बमों को बनाया जा रहा है। बमों के निर्माण के लिए 986 ग्राम पंचायतों में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत बनाए गए स्वयं सहायता समूहों की एक लाख महिलाओं को लगाया गया है। वह सभी चैरिटी के रूप में यानी निःशुल्क काम कर रही हैं।
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जिलाधिकारी की पहलजिलाधिकारी सी इंदुमती ने निष्प्रयोज्य व खाली पड़ी जमीनों को पौधों के जरिए हरा-भरा करने की जो वृहद योजना बनाई है। उप संभागीय प्रभागीय वनाधिकारी अतुलकांत शुक्ल कहते हैं कि अगर यह योजना मूर्त रूप लेती है तो जिले के लिए यह किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी। सुलतानपुर जिले में कार्यरत 10 हजार 260 स्वयं सहायता समूह हैं। इन सबको मुख्यालय सहित ब्लॉक स्तर पर सीड बम बनाने की ट्रेनिंग दी गई है।
रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे
जिलाधिकारी सी इंदुमती कहती हैं फिलहाल, बम बनाने के कार्य में जुटी एनआरएलएम की महिलाओं को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जा रहा है, लेकिन उन्होंने इसे बाजार से जोड़ने का निर्णय लिया है। इस बाबत उनकी बातचीत मुख्य सचिव से भी हुई है। सीड बम के उत्पादन के साथ धनार्जन हो सके इसके लिए प्रोजेक्ट पर काम वह कर रही हैं। राजस्थान जैसे राज्यों में इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। सुलतानपुर का सीड बम यदि इन राज्यों में खपेगा तो महिलाओं को आय का एक बेहतर जरिया मिल सकेगा।
जिलाधिकारी सी इंदुमती कहती हैं फिलहाल, बम बनाने के कार्य में जुटी एनआरएलएम की महिलाओं को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जा रहा है, लेकिन उन्होंने इसे बाजार से जोड़ने का निर्णय लिया है। इस बाबत उनकी बातचीत मुख्य सचिव से भी हुई है। सीड बम के उत्पादन के साथ धनार्जन हो सके इसके लिए प्रोजेक्ट पर काम वह कर रही हैं। राजस्थान जैसे राज्यों में इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। सुलतानपुर का सीड बम यदि इन राज्यों में खपेगा तो महिलाओं को आय का एक बेहतर जरिया मिल सकेगा।
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ऐसे बनेगा सीड बमसीड बम कपड़े की बनी एक पोटली होगी। इसमें दो भाग मिट्टी और एक भाग गोबर का होगा। इस पोटली में शीशम, महुआ, खैर, सहजन, नीम, जामुन, कंजी आदि कई पौधों के बीजों का मिश्रण डाला जाएगा। पौधों के बीज इकट्ठा करने की जिम्मेदारी कृषि और वन विभाग सौंपी गई है। यह सभी प्राकृतिक रूप से हर गांव में उपलब्ध हैं, जो आसानी से नि:शुल्क मिल जाएंगे। उगे पौधों की देखरेख का जिम्मा वन विभाग के पास रहेगा।