लाल भिंडी का नाम है काशी की लालिमा कृषि अधिकारी सुलतानपुर एसएन चौधरी ने बताया कि, लाल भिंडी को काशी की लालिमा कहा जाता है। बाजार में इसकी कीमत को देखकर यूपी ही नहीं मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली में इसकी खेती होने लगी है। अब सुलतानपुर के किसान भी सीजन से इसकी खेती शुरू कर देंगे।
यह भी पढ़ें – खुशखबर, बेसिक व माध्यमिक छात्र-छात्राओं को मिलेगा यात्रा भत्ता, पर यह शर्त जरूरी है साल में दो बार बोई जाती है लाल भिंडी एसएन चौधरी ने बताया कि, लाल भिंडी की फसल 45-50 दिन में तैयार हो जाती है। साल में दो बार बोई जाती है। विटामिन से भरपूर लाल भिंडी की बुआई फरवरी-मार्च और जून-जुलाई में की जाती है। पानी की अधिक जरूरत नहीं होती है। गर्मी के महीने में लाल भिंडी की खेती से किसानों मालामाल होंगे। लाल भिंडी की अच्छी ऊपज लेने के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।
यह भी पढ़ें – यूपी विधानसभा की नई पहल अब एक दिन होगा सिर्फ महिलाओं के नाम कम लागत और अधिक फायदा जिला कृषि अधिकारी एसएन चौधरी ने बताया कि, किसान अब कम लागत और अधिक फायदा वाली खेती कर रहे हैं। किसान वैसे तो अब नकदी फसलों में कई तरह की सब्जियां उगा रहे हैं। लेकिन भिंडी में सर्वाधिक विटामिन पाया जाता है। ज्यादातर सब्जी किसान हरी भिंडी की खेती करते हैं। लेकिन विभाग अब कम लागत में मुनाफा ज्यादा देने वाली लाल भिंडी की खेती की तरफ़ किसानों का रुझान पैदा कर रहा है।
सेहत के लिए फायदेमंद है लाल भिंडी एसएन चौधरी ने बताया कि, वैज्ञानिकों का मानना है कि हरी भिंडी के मुकाबले लाल भिंडी लोगों की सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है। इतना ही नहीं है हरी भिंडी की अपेक्षा सब्जी बाजार में लाल भिंडी की कीमत भी कई गुना ज्यादा है और लाल भिंडी लोगों की पहली पसंद बन रही है।
20 कुंतल प्रति एकड़ तक होती है पैदावार चौधरी ने बताया कि, लाल भिंड़ी की उपज 20 कुंतल प्रति एकड़ है। लाल भिंडी की लंबाई 7 इंच तक रहती है। लाल भिंडी के सेवन से शरीर को जहां एनर्जी मिलती है वहीं इम्युनिटी भी बढ़ती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि, आम जनता इसे पकाकर सब्जी के रूप में खाने के बजाए सलाद के रूप में खाए तो अधिक लाभकारी है।
लाल भिंड़ी के बीज यहां से खरीदें लाल भिंड़ी के बीज के इच्छुक किसान भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी 2200- 2400 रुपए किलो के भाव में बीच को प्राप्त कर सकते हैं। लाल भिंडी की काशी लालिमा किस्म को वैज्ञानिकों ने कई साल की मेहनत के बाद विकसित किया है।
– राम सुमिरन मिश्र