सुकमा

लाल आतंक से बेखौफ अब आदिवासियों ने शुरू की ये पहल, जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

School in sukma: बीस साल पहले जहां माओवादियों ने बुझा दिया था शिक्षा का चिराग, अब 50 से अधिक गांव के बच्चे देखेंगे स्कूल का मुंह। जिला प्रशासन ने स्थानीय पढ़े-लिखें लोगों को बनाया है शिक्षादूत।

सुकमाJul 28, 2019 / 07:57 pm

CG Desk

लाल आतंक से बेखौफ अब आदिवासियों ने शुरू की ये पहल, जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

सुकमा। देश में आज कही भी छत्तीसगढ़ की बात होती है तो सबके दिमाक में सिर्फ बस्तर ही आता है, छत्तीसगढ़ का वो लगभग 13 प्रतिशत नक्सल प्रभावित हिस्सा (Naxal Affected) ही सबके जहन में बसा हुआ है क्योकि यहाँ से लगातार नक्सली हमले और लोगो के मारे जाने की खबर सामने आती है। आज हम आपको इन सब से हटके एक रिपोर्ट बताने वाले हैं जो बस्तर में, वहा के लोगो के द्वारा बिना डरे देश के भविष्य का निर्माण करने में अपनी भूमिमा निभा रहे हैं।

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माओवादियों ने सुकमा (Sukma District) जिले में करीब 123 स्कूल व आश्रमों को जमींदोज कर दिया। क्योंकि यहां फोर्स ठहरती थी। यही वजह थी कि यहां के बच्चे 20 सालों से स्कूल का मुंह नहीं देख पाए थे। इलाके के आदिवासियों (tribals) ने अपने बच्चों के लिए शिक्षा का महत्व समझते हुए स्कूल के लिए खुद ही झोपड़ी तान दी और जिला ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कराकर प्रशासन से स्कूल संचालित करने की मांग की।सालभर पहले सुकमा (Naxal area sukma) के मेहता गांव से इसकी शुरूआत हुई थी। फिर क्या एक-एक कर आज इस इलाके में 88 स्कूल शुरू हो गए हैं। इतना ही नहीं प्रशासन ने स्थानीय पढ़े-लिखे लोगों को मुख्यालय बुलाकर पहले ट्रेनिंग दी, इसके बाद उन्हें शिक्षादूत बनाकर पढ़ाने भेजा।

ग्रामीणों ने माओवादियों से भी की है अपील
दरअसल जिन इलाके के स्कूलों को माओवादियों (Maoists) ने तोड़ा था वहां आज भी उनकी अच्छी दखल है। ग्रामीणों ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए माओवादियों तक भी संदेश पहुंचाया है कि शिक्षा को फैलने से न रोके। बच्चों को झोपडिय़ों में पढऩे दें और शिक्षकों को भी अपना काम करने दें।

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क्या कहते है ग्रामीण
लगभग दो दशकों से शिक्षा से दूर होने का मलाल यहां के युवा ग्रामीणों को भी है। अब उन्हें भी लगने लगा है कि शिक्षा न मिल पाने की वजह से उनका क्षेत्र दो दशक पिछड़ गया है। पत्रिका ने जब उनसे बातचीत की तो उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि वे तो अनपढ़ ही रह गए। क्योंकि गांव के आसपास (school in sukma) स्कूल नहीं था। आज इन जैसे कई गांवों में न आवास योजना है न शौचालय और न ही अन्य सरकारी योजनाएं। यहां गांव के भवनों को तोड़ दिया गया। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि साल 1997 के बाद अब फिर से यहां पढ़ाई शुरू हुई है।

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इन धुर माओवाद प्रभावित इलाकों में खुले हैं स्कूल
सुकमा जिले के जिन गांवों में स्कूल खुले हैं, वह धुर माओवाद प्रभावित इलाका है। इसमें किस्टारम, चिंतागुफा, बुरकालंका, एलारमडगू, ताड़मेटला, चिंतलनार, मुकरम, ताड़मेटला शुमार है।

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सुकमा कलेक्टर चन्दन कुमार का कहना है – यह ग्रामीणों की जागरूकता है कि किसी भी गांव में स्कूल खोलने के लिए फोर्स नहीं भेजी जा रही है। वे खुद ही ग्राम पंचायत से प्रस्ताव पास करवाकर जिला प्रशासन से स्कूल खोलने की बात कहते हैं। इसके बाद प्रशासन अपने स्तर पर उनकी मदद करता है।लगभग आज 88 स्कूल (school in sukma) फिर से शुरू हो गए हैं। इतना ही नहीं पढ़ाई के लिए उठाए जा रहे इस कदम से ग्रामीणों के बीच जागरूकता बढ़ी है कि वे खुद ही झोपडिय़ों का निर्माण करते है। जिसमें उनके बच्चे पढ़ सकें। गांव के पढ़े लिख लोग ही शिक्षादूत के रूप में यहां काम कर रहे हैं।बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन की भी व्यवस्था की गई है।

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फैक्ट फाइल
वर्ष 2018 दर्ज संख्या – 2277
वर्ष 2019 दर्ज संख्या – 1557
कुल 3834 छात्र

 

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