गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चंद्रोदय होने तक गणेशजी की प्रसन्नता के लिए उपवास रखने का विधान है। संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े पहनें और विधिविधान से गणेशजी व लक्ष्मीजी की पूजा करें।
रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत. फल, फूल, आदि से श्रीगणेश की विधिवत पूजा करें। गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें। श्री गणेश को मोदक का भोग लगाएं। ऋतु फल आदि अर्पित करें। शाम को संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े। इसके बाद पश्चात गणेशजी की आरती करें।
विधिवत गणेश पूजा के बाद गणेशजी के सरल मंत्र ‘ऊं गं ऊं अथवा ‘ऊं गं गणपतये नम: की कम से कम एक माला जाप अवश्य करें। गणेशजी की पूजा से बुद्धि का विकास तो होता ही है साथ ही कामकाज में भी वृद्धि होती है।
ज्योतिष के जानकारों के अनुसार व्यापारिक वृद्धि के लिए गणेशजी की पूजा सर्वाेत्तम मानी जाती है। चतुर्थी के लिए व्यापारियों को गणेशजी की विधिविधान से पूजा के साथ ही मंत्र जाप करना चाहिए। इसका जरूर फल मिलता है।
बड़े से बड़ा संकट टाल देता है संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ
गणेशजी संकट हरण भी हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ बड़े से बड़ा संकट टाल देता है।
इस दिन विधि विधान से गणेशजी की पूजा करें, उन्हें दूर्वा अर्पित करें और फिर संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें। कोई बड़ा संकट हो तो चतुर्थी से शुरु कर लगातार 40 दिन तक मनोयोग से यह पाठ करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र पाठ में बमुश्किल पांच मिनट लगते हैं। श्रद्धापूर्वक 40 दिन तक लगातार पाठ करने के बाद आपको खुद परिणाम महसूस होने लगेगा।