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The Lancet Health Report : भारत में जान लेवा हो रही हवा, हर साल 33 हजार मौतें

The Lancet Health Report में एक बहुत ही चौंकाने वाली बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कम प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण की बढ़ोतरी होती है तो वह ज्यादा जानलेवा है।

नई दिल्लीJul 05, 2024 / 11:55 am

Anand Mani Tripathi

भारत में 2008 से 2019 के बीच रोजाना 7 से अधिक मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही हैं। 10 भारतीय शहरों में किए गए अध्ययन के अनुसार इन शहरों में होने वाली सालाना लगभग 33,000 मौतें अधिक वायु प्रदूषण के स्तर के कारण हुईं, जिसके मानक भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों से अधिक रखे गए हैं। वैज्ञानिकों ने इन शहरों में हुईं लगभग 36 लाख मौतों का विश्लेषण किया।
अध्ययन के अनुसार, भारत में वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे का प्रदूषण स्तर भी दैनिक मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पीएम 2.5 पार्टिकल का प्रति घन मीटर 15 माइक्रोग्राम से ज्यादा का स्तर सेहत के लिए खतरनाक है, लेकिन भारत में यह स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रखा गया है जो डब्ल्यूएचओ की सिफारिश से चार गुना है।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में गुरुवार को प्रकाशित यह अध्ययन भारत में अल्पकालिक रूप से बढ़ने वाले वायु प्रदूषण और मृत्यु के जोखिम के बीच संबंध का आकलन करने वाला पहला शहर आधारित विश्लेषण है। अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में प्रदूषण के मामले में सुरक्षित समझे जाने वाले शहर जैसे शिमला भी सुरक्षित नहीं हैं।
इतना ही नहीं अध्ययन में दावा किया गया है कि कम प्रदूषित शहरों में प्रदूषण में मामूली बढ़ोतरी से अधिक प्रदूषित शहरों की तुलना में मौतों में ज्यादा बढ़ोतरी होती है। अध्ययन करने वाली अंतरराष्ट्रीय टीम में वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और नई दिल्ली के क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल सेंटर के शोधकर्ता भी शामिल थे।
शिमला में प्रदूषण और मौत का संबंध ज्यादा स्पष्ट दो दिनों (अल्पकालिक एक्सपोजर) के लिए पीएम 2.5 पार्टिकल के प्रदूषण में औसतन 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से मौत का जोखिम 1.4 फीसदी बढ़ जाता है। प्रदूषण में इतनी ही वृद्धि पर जब शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण को वायु गुणवत्ता के भारतीय मानकों से नीचे के अवलोकनों तक सीमित रखा, तो मृत्यु जोखिम दोगुना (2.7 प्रतिशत) पाया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि दिल्ली में पीएम 2.5 में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से दैनिक मृत्यु दर में 0.31 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि बेंगलुरु में प्रदूषण में इतनी ही बढ़ोतरी पर यह वृद्धि 3.06 प्रतिशत थी। अध्ययन में कहा गया है कि अपेक्षाकृत कम वायु प्रदूषण वाले शहर जैसे बेंगलूरू, चेन्नई और शिमला में प्रदूषण और मौत का कारण-परिणाम संबंध विशेष रूप से मजबूत देखा गया। यानी इन शहरों में प्रदूषण की मात्रा में अल्प बढ़ोतरी से भी मौतों की संख्या ज्यादा बढ़ोतरी हुई। हालांकि अध्ययन में आगाह किया गया है कि, इन शहरों में स्थानीय रूप से उत्पन्न प्रदूषक भी इन अतिरिक्त मौतों का कारण बन रहे हों।

दिल्ली में सबसे ज्यादा करीब 12000 मौतें

शोधकर्ताओं ने भारत के 10 बड़े मेट्रो शहरों अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी में पीएम 2.5 माइक्रोपार्टिकल के प्रदूषण का अध्ययन किया। यह पार्टिकल कैंसर के लिए भी जिम्मेदार माना गया है। अध्ययन में पाया गया दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक सालाना 11,964 यानी 11.5 फीसदी मौतें हुईं। अहमदाबाद में 2,495, बेंगलुरू में 2,102, चेन्नई में 2,870, हैदराबाद में 1,597, कोलकाता में 4,678, मुंबई में 5,091, पुणे में 1,367, शिमला में 59 और वाराणसी में 831 लोगों की जान गई।

घरों के अंदर भी बच्चे प्रदूषण से सुरक्षित नहीं

उधर कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने अपनी नई रिसर्च में खुलासा किया है कि भारत में बच्चे घरों के भीतर भी प्रदूषण से सुरक्षित नहीं हैं। अध्य्यन के अनुसार देश में प्रति हजार शिशुओं-बच्चों की मौतों में से 27 की जान खाना पकाने के लिए घरों में उपयोग होने वाला दूषित ईंधन से हो रही हैं। 2023 में जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 100 सबसे ज्यादा खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में से 83 भारत में हैं। इन सभी शहरों में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों से 10 गुणा ज्यादा है।
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