सन 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की अस्थियां इस शौर्य मंदिर में बने समाधि स्थल के गर्भगृह में रखी हैं। इस समाधि पर लोग श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं तथा दीपक प्रज्वलित करते हैं। इस शौर्य मंदिर के साथ किवदंतियां व विश्वास जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि शौर्य मंदिर के गर्भ गृह में शहीद सैनिकों की आत्माएं निवास करती हैं, फाजिल्का क्षेत्र को प्रत्येक प्रकोप से बचाए हुए हैं।
क्षेत्रवासियों का विश्वास है फाजिल्का शहर को सितम्बर 1988 की भीषण बाढ़ से शहीद सैनिकों की आत्माओं ने ही बचाया था। इस बाढ़ से दर्जनों सीमावर्ती गांव पूरी तरह बह गए थे। बाढ़ का पानी आसफवाला गांव के बाद फाजिल्का की तरफ बढ़ रहा था। आसफवाला का स्मारक भी घुटनों तक पानी में डूब गया लेकिन इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से पानी का स्तर गिरना शुरू हो गया। इसके बाद क्षेत्रवासियों का इस शौर्य मंदिर के प्रति विश्वास और भी बढ़ गया।
इसी शौर्य मंदिर के साथ दूसरी किवदंती यह भी जुड़ी है कि यहां सच्चे मन से श्रद्धा अर्पित करने वालों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। स्मारक को क्षेत्रवासी बेहद पवित्र मानते हैं। मान्यता यह भी है कि यहां शीश झुकाने वाला व्यक्ति जीवन की ऊंचाइयों को छूता है तथा समृद्धि को प्राप्त करता है। क्षेत्रवासियों की मानें तो इस प्रकार के कई उदाहरण हैं जो इन मान्यताओं की पुष्टि करते हैं।