तब भी बाइक पर आए थे दो युवक
विनोबा बस्ती में 2 अगस्त 2005 की शाम समय करीब साढ़े या आठ बजे, घर के बाहर पांच वर्षीय प्रांजल कपूर अपने हमउम्र के बच्चों के साथ रोजाना की तरह गली में खेलने में मशगूल था। इतने में बाइक सवार दो युवक आए। इसमें एक ने इन चार-पांच बच्चों से प्रांजल का नाम पूछा तो यह बालक हंसते और मुस्कराते हुए बोला, अंकल मैं हूं प्रांजल। इस पर शख्स ने उसके पापा का नाम दीपक बताया तो प्रांजल ने सिर हिलाते हुए हामी भरी। शख्स ने बोला कि आपके पापा ने टॉफी देने के लिए अपनी दुकान पर बुलाया है। यह सुनकर बच्चा खुश होकर दोनों युवकों की बाइक पर बैठ गया। कुछ देर बाद जब इस बच्चे की मां पिंकी ने संभाला तो बच्चा नहीं था। उसके साथ खेल रहे बच्चों ने बताया कि प्रांजल तो अपने पापा की दुकान पर किसी अंकल के साथ गया है। इतने में अपनी दुकान से पैदल घर आए दीपक कपूर ने किसी व्यक्ति को प्रांजल को बुलाने की बात नहीं कही थी। पूरा परिवार बच्चे को ढूंढने में जुट गया। रात करीब सवा नौ बजे अपहरर्ताओं ने उसके घर पर लगे बेसिक फोन पर कॉल की थी, तब बोले कि प्रांजल का अपहरण हमने किया है और पांच लाख रुपए की फिरौती मांगी। यह सुनते ही कोहराम मच गया। बालक रुद्र शर्मा और प्रांजल कपूर के अपहरण करने का तरीका एक जैसा ही निकला।लंबे समय तक की थी रैकी
प्रांजल अपहरणकांड में अपहऱर्ताओं ने करीब एक महीने तक रैकी की थी। बालक विनोबा बस्ती के स्कूल में पढ़ता था।उसकी मां ने उसे वहा से हटाकर एल ब्लॉक में संचालित दूसरे स्कूल में एडमिशन कराया। ऐसे में अपहरणकर्ताओं ने बालक को स्कूल से किडनैप की प्लानिंग बदलकर उसे घर के आगे से उठाने की साजिश रची। प्रांजल के दादा उस समय आयकर विभाग में अफसर थे, इस कारण अपहरर्ताओं ने मोटी रकम वसूली के लिए यह पूरा खेला था।