जानकारी के अनुसार रोडवेज बसों में होने वाली आपराधिक घटनाओं और राजस्व में सेंध को रोकने के लिए राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम मुख्यालय की ओर से करीब एक दशक पूर्व प्रदेशभर में 2500 रोडवेज बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। लेकिन पहले संविदा फर्म से अनुबंध समाप्त होने से कई वर्षों तक कैमरे बंद रहे तो, बाद में रोडवेज प्रशासन की उदासीनता से यह योजना खटाई में पड़ गई। हालात यह है कि जिन बसों में कैमरे लगाए उनमें अधिकांश बसें तो कंडम हो चुकी है। जबकि नई रोडवेज बसों में कैमरे ही नहीं लगाए जा रहे हैं। वर्तमान में खुद रोडवेज अधिकारी ही इस योजना को भूला बिसरा चुके हैं।
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रोडवेज निगम की उदासीनता से करोड़ों रूपए डूबे
राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की ओर से वर्ष 2014 में रोडवेज बसों में बेटिकट यात्रा कराने के मामले में परिचालकों पर अंकुश लगाने तथा बसों में चोरी व अन्य आपराधिक घटनाओं की रोकथाम सहित महिला सुरक्षा पुख्ता करने के लिए प्रदेशभर में लंबी दूरी की 2500 रोडवेज बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी शुरु की थी। इन कैमरों का उद्देश्य किसी भी रूट की बस में वास्तविक यात्रियों की संख्या पता करने, बस मार्ग पर निर्धारित स्टॉपेज पर रुक रही हैं या नहीं, यह जानकारी रखने और एक्सप्रेस बसों के स्टॉपेज नहीं होने पर भी हर जगह रुकने पर पाबंदी लगाना भी था। ब्लू लाइन, स्टार लाइन सहित लंबी दूरी की बसों में कुछ यह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। इन पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। इसके लिए प्रत्येक आगार मुख्यालय स्तर पर ही एक निजी कम्पनी को बसों में सीसीटीवी कैमरा लगाने और उनकी मॉनिटरिंग का जिम्मा सौंपा गया था। सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने के बाद कुछ माह तक तो रोडवेज बसों में निगरानी रखी गई, लेकिन धीरे-धीरे हालात वही पुराने ढर्रे पर आ गया। बाद में निजी कंपनी ने अनुबंध समाप्ति का हवाला देकर कैमरों का रखरखाव व संचालन बंद कर दिया। वहीं रोडवेज ने भी इन सीसीटीवी कैमरों को अपने स्तर पर संचालित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। वर्तमान में सीसीटीवी कैमरों से लैस अधिकांश बसें कंडम होकर ग्राऊंड हो चुकी हैं। जबकि कुछ बसों में आज भी कैमरे नजर तो आते हैं लेकिन क्षतिग्रस्त हालत में है। इसके अलावा बसों में लगे वीटीएस (व्हीकल ट्रेकिंग सिस्टम) भी नकारा हो रहे हैं। ऐसे में रोडवेज प्रशासन की उदासीनता से करोड़ों रुपए डूब गए।
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फिर से मैनुअली हो रही बसों की जांच
रोडवेज बसों में सीसीटीवी लगाने के बेहतरीन परिणाम भी देखने को मिले थे। सीसीटीवी कैमरे लगने के बाद कुछ समय के लिए तो उड़नदस्ते को भी आराम मिल गया था। मुख्यालय पर बैठे अधिकारियों द्वारा कैमरों के माध्यम से सीधे बसों पर निगाह रखने से गड़बड़ी करने वाले कंडक्टरों तथा स्टेपनी बनकर टिकट लेने वालों में खौफ रहता था। इससे बिना टिकट यात्रा के मामलों में अप्रत्याशित कमी आई थी। लेकिन कैमरे बंद होने के बाद एकबार फिर अब रोडवेज प्रबंधन को भौतिक रूप से मार्गों पर जाकर औचक कार्रवाई करनी पड़ती है। लेकिन फ्लाईंग की सूचना लीक होने की समस्या रहने से पुख्ता कार्रवाई नहीं हो पाती है। यह भी पढ़ें