श्री गंगानगर

प्रदेश के स्कूलों में उधारी ज्ञान पर जी रही पंजाबी

Punjabi living on borrowed knowledge in state schools- कक्षा छठीं से आठवीं तक राजस्थान की बजाय पंजाब शिक्षा बोर्ड की पाठय पुस्तकों से पढ़ाई.

श्री गंगानगरAug 09, 2021 / 07:26 pm

surender ojha

प्रदेश के स्कूलों में उधारी ज्ञान पर जी रही पंजाबी

सुरेन्द्र ओझा
श्रीगंगानगर. पूरे प्रदेश के स्कूलों में तृतीय भाषा पंजाबी विषय की पढ़ाई उधारी पर पढ़ाई जा रही है। स्कूली बच्चों को राजस्थान की बजाय पंजाब की संस्कृति और साहित्य पर आधारित इन पाठयपुस्तकों को मजबूरन पढ़ाया जा रहा है।
पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की ओर से प्रकाशित पुस्तकों को राजस्थान में कक्षा छठीं से आठवीं तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए लागू किया गया है।

हालांकि तीन साल पहले कक्षा नवीं से बारहवीं तक की पुस्तकों को पंजाब की बजाय राजस्थान के लेखकों की ओर से प्रकाशित पुस्तकों को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर ने लागू किया है।
लेकिन कक्षा छठीं से आठवीं तक के विद्यार्थियों को राजस्थान की बजाय पंजाब की वीर गाथाओं को पढऩे की मजबूरी है। वहीं शिक्षक भी इसे अनुचित मानते है।

इन शिक्षकों की माने तो प्रदेश की संस्कृति का ज्ञान कक्षा छठीं से रुबरू कराने की प्रक्रिया शुरू होती है.
लेकिन मजबूरन पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की प्रकाशित पुस्तकों के कारण पाठयपुस्तकों में लिखे और प्रकाशित अध्याय का अध्यापन करवाया जा रहा है।

शिक्षाविदों की माने तो प्रदेश में पंजाबी विषय के व्याख्याताओं और विषय विशेषज्ञों की कोई कमी नहीं है लेकिन इस पुराने ढर्रे में बदलाव के लिए कोई प्रयास नहीं हो पाया है। इस कारण मजबूरन पड़ौसी राज्य पंजाब से वहां के सलबेस को यहां लागू करना पड़ा है।
पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की ओर से प्रकाशित पुस्तकें पंजाब के विद्यार्थियों को पहले पढ़ाई जाती है जबकि राजस्थान में यह एक साल बाद पाठयपुस्तकें काम में ली जा रही है। पंजाब में कक्षा पांववीं में लगने वाली पाठयपुस्तक राजस्थान में कक्षा छठीं में लागू की गई है।
इसी प्रकार पंजाब की छठी कक्षा की पुस्तक राजस्थान में सातवीं कक्षा के सलेबस में है। वहीं पंजाब में सातवीं कक्षा की पुस्तक राजस्थान में आठवीं कक्षा में लागू है।

पंजाब से इन पुस्तकों को खरीदने की मजबूरी रहती है। इस कारण इनके दाम भी करीब दुगुने है। जबकि राजस्थान के लेखकों की ओर से लागू की गई पुस्तकें कक्षा नवीं से बारहवीं कक्षा तक की पुस्तकें पंजाब की तुलना में सस्ती भी है।
कक्षा छठी से आठवीं तक पाठयक्रम बनाने और पाठयपुस्तकों के लिए राजस्थान सरकार ने उदयपुर स्थित राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान को अधिकृत किया हुआ है।
जबकि कक्षा नवीं से बारहवीं तक कक्षाओं के लिए पाठयक्रम के संबंध में लागू करने या विसंगतियों को दूर करने के लिए अजमेर स्थित माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान को अधिकृत किया गया है।

सरकारी स्कूलों में पाठयपुस्तकों की आपूर्ति के राजस्थान राज्य पाठय पुस्तक मंडल जयपुर ही अधिकृत है।
राजस्थान पंजाबी भाषा अकादमी सचिव श्यामलाल कुक्कड़ की माने तो पहले कक्षा छठीं से बारहवीं तक तृतीय भाषा पंजाबी विषय की पाठयपुस्तकें पंजाब शिक्षा बोर्ड की ओर से तय की गई पाठयपुस्तकों को ही हमारे प्रदेश में लागू किया हुआ था।
लेकिन तीन साल पहले कक्षा नवीं से बारहवीं तक का सलेबस राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की ओर से तैयार करवाई गई पाठयपुस्तकों को लागू किया जा चुका है।

यह सही है कि प्रदेश में पंजाबी विषय के विद्वान लेखकों की कमी नही है। यदि यह विसंगति दूर हो जाएं तो हमारे प्रदेश में हमारे लेखकों की पुस्तकें ही सलेबस में नजर आएगी।
पंजाब में पंजाबी भाषा विषय का सलेबस बदलने का असर राजस्थान पर पड़ता है। पंजाबी विषय में निशुल्क पाठ्य पुस्तक योजना के तहत पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से खरीदकर राजस्थान के सरकारी स्कूलो में उपलब्ध कराता है। राजस्थान की मांग के अनुरुप किताबें पंजाब से नहीं मिल पाती हैं।
पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड अपने राज्य में खपत के मुताबिक ही किताबें प्रकाशित करवाता है और राजस्थान को शेष बवे स्टॉक से आपूर्ति करवाने की प्रक्रिया अपनाता है।

पंजाब बोर्ड की ओर से अपनी योजना के मुताबिक कुछ सालों बाद किताबों का पाठ्यक्रम बदल दिया जाता है, जिसका राजस्थान को तत्काल पता न चलने की वजह से यहां स्कूलों में अलग अलग किताबे उपलब्ध होने के कारण विसंगति पैदा हो जाती हैं।
पुरानी आवंटित किताबें अनुपयोगी हो जाती है। एेसे में पुस्तकों को बार बार पंजाब से खरीदने से आर्थिक नुकसान भी प्रदेश को उठना पड़ रहा है।

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