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श्री गंगानगर

राजनीति के पुरोधा: विरासत सौंप विदा हुए वड्डे सरदार

– सरदार गुरजंटसिंह बराड़ उस पीढ़ी के राजनीतिज्ञ थे जब राजनीति छल-प्रपंच से दूर थी

श्री गंगानगरNov 04, 2024 / 06:42 pm

surender ojha

श्रीगंगानगर. भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा राजस्थान सरकार के पूर्व ऊर्जा व सिंचाई राज्य मंत्री स. गुरजंट सिंह बराड़ (91) की देह पंचतत्व में विलीन हो गई। उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव चक 5 एलएनपी. में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। जिला पुलिस की ओर से सलामी दी गई। हजारों नम आंखों ने क्षेत्र की राजनीति के पुरोधा व कद्दावर नेता गुरजंट सिंह बराड़ को अंतिम विदाई दी। बराड़ इतने पढ़े लिखे नहीं थे। लेकिन दुनियादारी का अद्भुत ज्ञान था। हस्ताक्षर के रूप में गुरजंट सिंह भी तभी लिखना सीखा जब पहली बार विधायक चुने गए। सहज और सरल इतने कि हर कोई अपना दुख-दर्द बेहिचक उनसे साझा कर लेता था। सरदार गुरजंटसिंह बराड़ उस पीढ़ी के राजनीतिज्ञ थे जब राजनीति छल-प्रपंच से दूर थी।
नेता वही बनता था, जो जनता की पीड़ा को अपनी समझ कर उसके समाधान का प्रयास करने की मानसिकता रखता था। ठेठ देहाती लिबास (चादर- कुर्ता) और सिर पर सिखी की पहचान पगड़ी उनकी पहचान थी, जिसे मंत्री बनने के बाद भी अपनाए रखा। उनकी कद काठी पर यह लिबास फबता भी था। उनके नजदीकी बताते हैं कि मंत्री बनने के बाद अपने विभाग के अधिकारियों के बीच जब वह पहली बार गए तो उनका पहनावा देखकर अधिकारियों को विश्वास ही नहीं हुआ कि यह शख्स उनके विभाग का मंत्री है। बाद में तो सभी अभ्यस्त हो गए।सरदार गुरजंट सिंह बराड़ भैरोसिंह शेखावत के मंत्रिमंडल में शामिल हुए तो उनको संबोधन मिला मंत्रीजी। सभी उन्हें मंत्रीजी कह कर ही बुलाते थे। यही सबोधन परिवार के सदस्यों की आदत में भी शामिल हो गया था। उनकी एक खासियत का जिक्र करना जरूरी है। वह मितभाषी तो थे ही मृदु भाषी भी थे। शायद ही उन्हें किसी ने तेज आवाज में और कड़वा बोलते हुए सुना हो। आमजन हो या कोई अधिकारी सभी को वह पूरा समान देते थे।

भैँरोसिंह शेखावत ने करवाई थी भाजपा ज्वाइनिंग

भाजपा में उनके शामिल होने का किस्सा मजेदार है। प्रो. केदार के निधन के बाद इस इलाके में भाजपा की जड़ें जमाने के लिए भैरोसिंह शेखावत ने श्रीगंगानगर जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर जनसभाएं की थीं। सादुलशहर में उनकी जनसभा धानमंडी में हुई। गंगानगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार चुनाव हार चुके सुरेन्द्र सिंह राठौड़ तब तक भाजपा में शामिल होने का मानस बना चुके थे। इस जनसभा में राठौड़ और गुरजंट सिंह बराड़ दोनों ही मंच पर थे। बराड़ उस जनसभा में भाजपा में शामिल होने का कोई इरादा नहीं रखते थे। उनकी इच्छा समर्थकों के साथ बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर शेखावत के हाथों भाजपा में शामिल होने की थी। घटनाक्रम कुछ इतनी तेजी से घटा कि सरल स्वभाव के बराड़ कुछ नहीं कर पाए। मंच पर खड़े राठौड़ ने माइक पर बराड़ का नाम पुकारा तो वह उठ कर उनके पास आ गए। उसी समय राठौड़ ने शेखावत से माइक के पास आने का आग्रह किया तो वह भी आ गए। उसके बाद हाथ में पकड़ा हुआ केसरिया पटका राठौड़ ने शेखावत के हाथ में दिया और माइक से घोषणा कर दी कि अब भैरोसिंह जी गुरजंटसिंह जी को केसरिया पटका पहना कर भाजपा में शामिल करेंगे। शेखावत को भी राठौड़ के इस खेल का पता नहीं था। उन्होंने पटका गुरजंट सिंह के गले में डाल दिया। बाद में जलपान के दौरान शेखावत ने गुरजंट सिंह से मजाक करते हुए कहा- गुरजंट सिंह जी राठौड़ ने आपके गले में सांकळ डलवा ही दी। इस पर गुरजंट सिंह इतना ही बोले कि- शेखावत साहब इसने मेरी सारी स्कीम चौपट कर दी। मैं बड्डा प्रोग्राम करणा सी। गुरजंट सिंह जी हिंदी बोलते-बोलते मां बोली पंजाबी बोलने लगते थे। उनका भाषण हिंदी और पंजाबी का मिश्रण होता था।

आखिर तक रही दोस्ती

वर्ष 1993 के चुनाव में भैरोसिंह शेखावत को सरकार बनाने के लिए निर्दलीयों का समर्थन चाहिए था। श्रीगंगानगर जिले से उन्हें तीन निर्दलीय विधायकों गुरजंटसिंह बराड़, रामप्रताप कासनिया और शशिदत्ता का समर्थन मिलने से सरकार बनी। शेखावत ने तीनों को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। भैरोसिंह शेखावत के साथ तब हुई दोस्ती को बराड़ ने इतना प्रगाढ़ किया कि बराड़ परिवार में जब भी कोई खुशी का मौका आया, शेखावत जरूर आए। यह सिलसिला तब तक चला जब तक शेखावत जीवित रहे।

पोता बना विधायक तो तब छलके खुशी के आंसू


सादुलशहर विधानसभा क्षेत्र से 2013 का चुनाव जीतने के बाद बराड़ सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने का मानस बना चुके थे। वर्ष 2018 के चुनाव में उन्होंने अपने पोते गुरवीरसिंहबराड़ को आगे किया। लेकिन जीत नसीब नहीं हुई। हार से वह अंदर से टूटे जरूर होंगे। लेकिन इस टूटन को सार्वजनिक नहीं होने दिया। वर्ष 2023 के चुनाव में पोता फिर मैदान में उतरा तो दादा उन लोगों के पास जरूर गया, जो हमेशा साथ रहे थे। जिस दिन चुनाव परिणाम आया उस दिन दादा उमीद से भरा हुआ शहर में आया हुआ था। कानों तक जब यह संदेश पहुंचा कि पोता जीत गया है तो दादा अपने आप को रोक नहीं पाया। गाड़ी में व्हील चेयर पर बैठकर दादा मतगणना स्थल तक पहुंचा। पोता आशीर्वाद के लिए चरणों में झुका तो दादा की आंखें छलक पड़ी। मतगणना स्थल पर मौजूद लोगों ने तब शायद उन्हें आखिरी बार सार्वजनिक रूप से देखा होगा। सरदार अब विदा हो चुके हैं, अपनी विरासत सौंप कर। विरासत सही हाथों में सौंपी या नहीं, यह भविष्य बताएगा।

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