बीएसएनएल में एसडीओ के पद पर कार्यरत भूपेश कुमार के माता-पिता पदमपुर के समीप फरसेवाला में रहते हैं। जहां वे बीमार हो गए और कोरोना के लक्षण आए। 28 अपे्रल को पिता बृजलाल (76) व मां विद्यादेवी (65) को वे यहां अपने सद्भावना नगर ले आए। यहां निजी अस्पताल में दिखाया तो भर्ती करने को बोला। लेकिन अस्पताल में उनको घबराहट होने लगी। इसलिए घर पर ही इलाज कराने की रिस्क ली। मां व पिता को अपने सद्भावना नगर स्थित घर ले आए। जहां एक कमरे में दोनों रखा। घर में ही इलाज को लेकर वे बीमार होने के बाद भी खुश हुए।
उनको पहले तो डॉक्टर की दवाएं दी और इसके बाद होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक तथा नारियल पानी लगातार पिलाया। लेकिन तीन दिन तक उनकी हालत बहुत ज्यादा खराब रही। दोनों बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहे थे। एसडीओ की पत्नी व बेटा बुजुर्गों की सेवा में लगे रहे। चौबीस घंटे उनकी सेवा की। एक बार तो उन्होंने जिंदगी से आस ही छोड़ दी तथा दोनों भाईयों को मिलकर रहने व झगड़ा नहीं करने आदि परिवार की अन्य बतातें कही। उनको ऐसा लगा कि अब वे बच नहीं पाएंगे। लेकिन उनके बेटा व बहू ने सेवा नहीं छोड़ी। चार-पांच दिन बाद उनके मुंह का स्वाद लौट आया। ऑक्सीजन 90 से 85 हो गया। इस पर होम्योपैथी की दवा दी, जिससे आराम मिला। आयुर्वेदिक व एलोपैथी की भी दवाएं चलती रही। इससे उनको आराम आया। इसी दौरान एसडीओ, उनकी पत्नी व पुत्र को भी कोरोना जकड़ लिया। अब माता-पिता के इलाज के साथ खुद व बच्चों की भी समस्या हो गई। लेकिन फिर भी सभी एक-दूसरे की मदद व प्रोत्साहन देने में लगे रहे। एक बार तो परिवार के सभी सदस्यों ने संक्रमण का असर बढऩे पर जीवन की आस छोड़ दी थी। ऐसा लगने लगा था कि कब किसके साथ क्या हो जाए। एसडीओ ने तो परिवार को डायरी में सब कुछ लिख दिया कि मेरे बाद उनको क्या-क्या करना है। हालात इतने विकट होने के बाद भी परिवार के लोग एक-दूसरे को ढांढस बंधाकर कोरोना से लड़ते रहे। आठ दिन तक चली इस लड़ाई के बाद आखिर वे कोरोना से जीत गए। सभी खांसी, मुंह का स्वाद, सांस आदि सही हो चुका था। उन्होंने पूरे पंद्रह दिन तक घर में बंद होकर इस महामारी पर जीत हासिल कर ली।