साफा बांधने का है अलग अलग क्षेत्र में प्रचलन
उन्होंने बताया कि राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह से साफा बांधने का प्रचलन है। पुराने समय में राजा महाराजा जब युद्ध के मैदान में जाते थे ,तब सिर पर केसरियां साफा बांधकर जाते थे। इसके अलावा केसरिया भगवा रंग भी पहनते थे। यह रंग बहादुरी व बलिदान का प्रतीक माना जाता था। वही, गहरे रंग की पगडिय़ां ठंड के मौसम में पहनी जाती है। वही, सिर पर गर्मी के मौसम में हल्के रंग की पगड़ी पहनी जाती है। वही शादी समारोह में कुसुमल लाल तथा होली पर फागणिया पाग, अक्षय तृतीया आखातीज पर केसरियां रंग की पगड़ी पहनी जाती है। दीपावली पर्व पर मोर के गर्दन के रंग वाली पाग पहना जाता है। उन्होंने बताया कि गणतंत्र दिवस,स्वतंत्रता दिवस, राजस्थान दिवस और अन्य धार्मिक समारोह में होने वाले सरकारी कार्यक्रमों में अधिकारियों को निशुल्क साफा बांधने का कार्य लम्बे समय से किया जा रहा है। देवेन्द्र सिंह ने बताया कि साफा बांधना सीखने के लिए उन्होंने कोई शुल्क नहीं रखा हुआ है। उनके द्वारा सिखाए गए लोगों का रोजगार बन गया है। यह भी पढ़े… हनुमानगढ़ को मिल सकती है बड़ी सौगात, 500 करोड़ से घग्घर नदी की लाइनिंग को पक्का करने की तैयारी
बिना दहेज पुत्र की शादी में दी नि:शुल्क सेवा
देवेन्द्र ने बताया कि गत वर्ष सूरतगढ़ निवासी दो परिवारों ने बिना दहेज पुत्र की शादी की तो उन्होंने भी सेवा स्वरुप वहां नि:शुल्क बारातियों के साफे बांधे और धार्मिक कार्यों में भी बिना रुपए ही सेवा दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि साफा बांधना भी एक कला है। इसे जीवित रखने के लिए ही लोगों को सीखा रहे हैं। यह परम्परा आगे बढ़े, इसके लिए युवाओं को इसे फैशन के रूप में समारोह व कार्यक्रमों में पहनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यह भी पढ़े… पानी का गणित तैयार कर रहे, ताकि सर्द मौसम में फसलों की हो सके सिंचाई