अयोध्या राम मंदिर के मुख्य ध्वज स्तंभ पर दिखेगी राजस्थान की कला
कोठारी बंधुओं को गोली मेरे सामने लगी थी
बीकानेर के मूल निवासी कोलकाता से आए शरद और राम कोठारी बंधु भी बामन जी के मंदिर हमारे साथ ठहरे हुए थे। उन पर गोली भी मेरी आंखों के सामने 2 नवंबर 1990 को ही चली थी। उसी दिन मणिराम छावनी (वाल्मीकि आश्रम) में महंत नृत्य गोपाल दास ने बताया कि बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा झंडा लहरा दिया गया है। अपनी जीत हो गई है, जो कारसेवक लौटना चाहें, लौट जाएं। करीब 2 साल बाद 1992 को फिर कारसेवा का आह्वान किया गया। उस कारसेवा में मैं भी 4 दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंचा। इसके बाद 6 दिसंबर को ढांचा ध्वस्त करने में मेरा 5चावल के दाने जितना योगदान रहा है।
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पैदल चले, पैरों में छाले पड़ गए फिर भी हम रुके नहीं
आगरा फोर्ट से निकलकर हम टूंडला, कानपुर होते हुए लखनऊ पहुंचे। लखनऊ से मल्हौर, गोंडा होते हुए झिलाई स्टेशन पर चेन खींचकर हम ट्रेन से उतरे। इसके बाद झिलाई से पैदल 2 रात और 3 दिन चलते रहे। पैरों में छाले और उनमें खून बह रहा था। मैले-कुचैले कपड़ों में हमने अकमा, चाचचपारा, दलपतपुरा, तकिया, कुटैना और काज़ीदेवर गांव पार किए। फिर बड़ की खतरी, सहरिया, खीरिया, हल्लापुर, मिहियां की नदी पार कर भीटिया, मोहनपुरा, कोठा, परविती, कल्याणपुर से हल्लाकापुर होकर हमने घाघरा नदी को पार किया। यहां से नगवा, माझा पार कर सरयू नदी के इस पार तट पर पहुंचे। सरयू नदी का पुल पार कर राम घाट, लक्ष्मण घाट, भरत घाट, दशरथ घाट, कैकई घाट आदि पार कर काले राम मंदिर पहुंचे। वहां से हम स्वर्ग द्वार टेढ़ी बाजार स्थित बामन जी के मंदिर वैदेही वल्लभ कुंज में जाकर ठहरे थे।