5 दिसंबर, 1955 में अमरीका के अल्बामा में सार्वजनिक परिवहन वाहनों में अश्वेतों के साथ होने वाले नस्लीय नीतियों के विरोध स्वरूप शुरू हुए मोंटगोमरी बस बहिष्कार को उस समय भारत के समाचार पत्रों में भी बहुत महत्त्व के साथ छापा जा रहा था। क्योंकि यह अमरीका के नागरिक अधिकारों के आंदोलन में एक मौलिक घटना के साथ ही एक राजनीतिक और सामाजिक विरोध अभियान था। तत्कालीन भारत में छुआछूत एक सामाजिक बुराई थी जिसे खत्म करने का अभियान जोर पकड़ रहा था। उस आंदोलन को मार्टिन लूथर की वजह से भी भारतीय बहुत गंभीरता से ले रहे थे। क्योंकि वे महात्मा गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत और सत्याग्रह के हथियारों के साथ ही यह लड़ाई लड़ रहे थे। वे गांधी जी के जबदस्त अनुयायी थे। 1959 में वे अपने नायक को और ज्यादा जानने और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भारत आए थे।
स्कूल के दिनों से गांधी के अनुयायी
मार्टिन लूथर ने पहली बार 1949 में महात्मा गांधी जी के बारे में जाना। उस समय उनकी हत्या को एक साल बीत चुका था। एक मिडिल स्कूल छात्र के रूप में स्कूल में मिले होमवर्क में उन्होंने महात्मा गांधी और उनके विचारों के बारे में पढ़ा। उन्होंने अपने होमवर्क में गांधी जी के बारे में लिखा कि ‘वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो ईश्वर के बताए सच्चे मार्ग पर चलने वाली सच्ची आत्मा थे।’ इसके 6 साल बाद ही नागरिक अधिकारों के आंदोलन की मुख्य मार्गदर्शक रोज़ा पार्क्स की गिरफ्तारी के बाद मार्टिन ने 381 दिनों तक चले इस बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व किया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान उनकी ओर खींचा। पूरे आंदोलन के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का अनुसरण करते हुए विरोध जारी रखा। martin junior ने तब कहा था कि प्रभु यीशू ने हमें अहिंसा का मार्ग दिखाया और भारत में महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया के सामने इसकी शक्ति को साबित कर के दिखा दिया कि यह कितना अचूक हथियार है। वे हमेशा से भारत आना चाहते थे लेकिन नागरिक अधिकारों के आंदोलन ने उन्हें वर्षों तक व्यस्त रखा। तब 1959 में अमरीकी मित्र सेवा समिति और गांधी राष्ट्रीय स्मारक कोष के सहयोग से उनकी भारत यात्रा का आयोजन किया गया। यात्रा में उनकी पत्नी, कोरेटा स्कॉट किंग और उनकी जीवनी लेखक लॉरेंस डी. रेडिक भी शामिल थे।
मार्टिन लूथर ने पहली बार 1949 में महात्मा गांधी जी के बारे में जाना। उस समय उनकी हत्या को एक साल बीत चुका था। एक मिडिल स्कूल छात्र के रूप में स्कूल में मिले होमवर्क में उन्होंने महात्मा गांधी और उनके विचारों के बारे में पढ़ा। उन्होंने अपने होमवर्क में गांधी जी के बारे में लिखा कि ‘वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो ईश्वर के बताए सच्चे मार्ग पर चलने वाली सच्ची आत्मा थे।’ इसके 6 साल बाद ही नागरिक अधिकारों के आंदोलन की मुख्य मार्गदर्शक रोज़ा पार्क्स की गिरफ्तारी के बाद मार्टिन ने 381 दिनों तक चले इस बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व किया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान उनकी ओर खींचा। पूरे आंदोलन के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का अनुसरण करते हुए विरोध जारी रखा। martin junior ने तब कहा था कि प्रभु यीशू ने हमें अहिंसा का मार्ग दिखाया और भारत में महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया के सामने इसकी शक्ति को साबित कर के दिखा दिया कि यह कितना अचूक हथियार है। वे हमेशा से भारत आना चाहते थे लेकिन नागरिक अधिकारों के आंदोलन ने उन्हें वर्षों तक व्यस्त रखा। तब 1959 में अमरीकी मित्र सेवा समिति और गांधी राष्ट्रीय स्मारक कोष के सहयोग से उनकी भारत यात्रा का आयोजन किया गया। यात्रा में उनकी पत्नी, कोरेटा स्कॉट किंग और उनकी जीवनी लेखक लॉरेंस डी. रेडिक भी शामिल थे।
समाधि देख भावुक हो गए
अपनी यात्रा के दौरान उनका पहला पड़ाव महात्मा गांधी की राजघाट स्थित समाधि थी। उन्होंने समाधि पर पुष्प अर्पित किए। उस समय मौजूद एक पर्यवेक्षक के अनुसार, मार्टिन गांधी जी की समाधि पर पहुंचकर बहुत ज्यादा भावुक हो गए। वे वहां सिर झुकाए बहुत देर तक प्रार्थना करते रहे। उन्हें देख ऐसा लग रहा था जैसे वे उनसे बात कर रहे हों। बाद में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उप-राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन से मुलाकात की। यात्रा से लौटने पर अपने संस्मरण में उनकी पत्नी कोरेटा किंग ने कहा कि उनके पति के लिए इस यात्रा पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सर्वपल्ली राधाकृष्णन से मुलाकात की तुलना उन्होंने एक ही दिन में जॉर्ज वॉशिंगटन, थॉमस जैफरसन और जेम्स मैडिसन से मिलने के बराबर की।
अपनी यात्रा के दौरान उनका पहला पड़ाव महात्मा गांधी की राजघाट स्थित समाधि थी। उन्होंने समाधि पर पुष्प अर्पित किए। उस समय मौजूद एक पर्यवेक्षक के अनुसार, मार्टिन गांधी जी की समाधि पर पहुंचकर बहुत ज्यादा भावुक हो गए। वे वहां सिर झुकाए बहुत देर तक प्रार्थना करते रहे। उन्हें देख ऐसा लग रहा था जैसे वे उनसे बात कर रहे हों। बाद में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उप-राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन से मुलाकात की। यात्रा से लौटने पर अपने संस्मरण में उनकी पत्नी कोरेटा किंग ने कहा कि उनके पति के लिए इस यात्रा पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सर्वपल्ली राधाकृष्णन से मुलाकात की तुलना उन्होंने एक ही दिन में जॉर्ज वॉशिंगटन, थॉमस जैफरसन और जेम्स मैडिसन से मिलने के बराबर की।
अहिंसा पर छात्रों से चर्चा
अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान भी दिए। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मार्टिन लूथर किंग जूनियर रिसर्च एंड एजुकेशन इंस्टीट्यूट के मुताबिक अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में अहिंसा कारगर हो सकती है या नहीं। इस पर उन्होंने अफ्रीकी छात्रों के साथ विशेष रूप से चर्चा की। उन्होंने छात्रों से कहा कि अपने आंदोलन के बाद के सालों में उन्होंने महसूस किया कि अहिंसक प्रतिरोध केवल उस स्थिति में काम कर सकता है जहां सत्ता प्रतिद्वंद्वी के प्रति सचेत रूप से सहयोगी थी। मुंबई में बापू के निजी निवास पर रहने के दौरान उन्होंने गेस्टबुक में लिखा, ‘गांधीजी जिस घर में सोए थे, उस घर में सोने का अवसर मिलना एक ऐसा अनुभव है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।’ यात्रा के अंत में एक रात पहले 9 मार्च को अपने अंतिम समाचार सम्मेलन और रेडियो संबोधन में उन्होंने श्रोताओं को भारत से विदा लेते हुए कहा, यहां आकर अब वे पहले से कहीं ज्यादा आश्वस्त हो गए हैं कि अहिंसक प्रतिरोध का तरीका उत्पीडि़त लोगों के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार है जो न्याय और मानवीय गरिमा की रक्षा करता है।
अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान भी दिए। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मार्टिन लूथर किंग जूनियर रिसर्च एंड एजुकेशन इंस्टीट्यूट के मुताबिक अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में अहिंसा कारगर हो सकती है या नहीं। इस पर उन्होंने अफ्रीकी छात्रों के साथ विशेष रूप से चर्चा की। उन्होंने छात्रों से कहा कि अपने आंदोलन के बाद के सालों में उन्होंने महसूस किया कि अहिंसक प्रतिरोध केवल उस स्थिति में काम कर सकता है जहां सत्ता प्रतिद्वंद्वी के प्रति सचेत रूप से सहयोगी थी। मुंबई में बापू के निजी निवास पर रहने के दौरान उन्होंने गेस्टबुक में लिखा, ‘गांधीजी जिस घर में सोए थे, उस घर में सोने का अवसर मिलना एक ऐसा अनुभव है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।’ यात्रा के अंत में एक रात पहले 9 मार्च को अपने अंतिम समाचार सम्मेलन और रेडियो संबोधन में उन्होंने श्रोताओं को भारत से विदा लेते हुए कहा, यहां आकर अब वे पहले से कहीं ज्यादा आश्वस्त हो गए हैं कि अहिंसक प्रतिरोध का तरीका उत्पीडि़त लोगों के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार है जो न्याय और मानवीय गरिमा की रक्षा करता है।
अब्राहम लिंकन से की तुलना
स्वदेश लौटने पर मार्टिन लूथर ने अपने अनुयायियों के सामने गांधी और उनके जीवन की तुलना अब्राहम लिंकन से की। उन्होंने लोगों से कहा कि 1930 में डांडी मार्च में गांधी ने 350 किमी लंबे मार्च के दौरान अन्यायपूर्ण कानून के विरोध में लाखों लोगों का नेतृत्व किया। इस दौरान सैकड़ों लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पीटा गया और 60 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य यह बात समझ चुका था कि इस दुबले-पतले आदमी ने भारतीयों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वे उन्हें कभी नहीं हरा सकते।
स्वदेश लौटने पर मार्टिन लूथर ने अपने अनुयायियों के सामने गांधी और उनके जीवन की तुलना अब्राहम लिंकन से की। उन्होंने लोगों से कहा कि 1930 में डांडी मार्च में गांधी ने 350 किमी लंबे मार्च के दौरान अन्यायपूर्ण कानून के विरोध में लाखों लोगों का नेतृत्व किया। इस दौरान सैकड़ों लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पीटा गया और 60 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य यह बात समझ चुका था कि इस दुबले-पतले आदमी ने भारतीयों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वे उन्हें कभी नहीं हरा सकते।
आगे देखिये महात्मा गाँधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर से जुडी कुछ ख़ास तसवीरें। इनमे गांधी जी की समाधि पर श्रद्धांजलि देते किंग जूनियर, महात्मा गांधी की दांडी यात्रा , जनसमूह को अमरीका में नागरिक अधिकारों पर सम्बोधित करते किंग जूनियर और समाधि से अश्रुपूरित आँखों से लौटते किंग जूनियर।