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विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में महिलाओं को मिल रही पहचान

आधी आबादी की सोच को अखबार में उतारने के लिए राजस्थान पत्रिका की पहल संडे वुमन गेस्ट एडिटर के तहत आज की गेस्ट एडिटर वैज्ञानिक कनिका कालिया हैं। आप वर्तमान में भारतीय मानक ब्यूरो राजस्थान की निदेशक और प्रमुख हैं। आपकी शुरुआती पढ़ाई भोपाल और इंदौर से हुई हैं। पर्यावरण इंजीनियरिंग के बाद आप लगभग दो दशकों से भारतीय मानक ब्यूरो में सेवाएं दे रही हैं। आपने जल संसाधन विभाग में जलाशयों, बांधों और नहरों से संबंधित मानकों का निर्माण किया।

Mar 30, 2024 / 05:32 pm

Jaya Sharma

महिला में सृजन, पोषण व परिवर्तन की शक्ति
कनिका कालिया, संडे गेस्ट एडिटर
जयपुर. मेरी प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर से हुई। पैरेंट्स ने पढ़ाई के साथ खेलों में भी आगे बढ़ाया। सिविल इंजीनियरिंग के बाद दिल्ली से पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की। भारतीय मानक ब्यूरो में 18 साल के कॅरियर के दौरान आई चुनौतियों से बहुत कुछ सीखा। खासकर उत्पाद प्रमाणीकरण गतिविधियां चुनौतीपूर्ण रही। फैक्ट्रीज में ऑडिट करना एक अलग ही अनुभव रहा। कई बार इन्स्पेक्शन की नेगेटिव रिपोर्ट भी निर्भीकतापूर्वक बनाई।

किसी भी वस्तु या सेवा की गुणवत्ता में मानकों की अहम भूमिका होती है। सभी स्तरों पर मानकों के प्रति जागरूकता पिछले वर्षों में लगातार बढ़ी है। बीआईएस स्टैंडड्र्ज क्लब में 60 प्रतिशत मेंटॉर महिलाएं हंै, जो मानकों की अवेयरनेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं के लिए कहना चाहूंगी कि महिला एक पूर्ण चक्र है, जिसके भीतर सृजन, पोषण और परिवर्तन करने की शक्ति होती है। हिलेरी क्लिंटन के शब्दों में हमें यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इसका कोई फ ॉर्मूला नहीं है। इसलिए हमें उन विकल्पों का सम्मान करना चाहिए जो महिला अपने और अपने परिवार के लिए चुनती हैं।

सेहत का पाठ पढ़ा महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर

जयपुर. टोंक रोड निवासी आशा कुमावत पिछले तीन साल से ईको फ्रेंडली सेनेटरी नैपकिन बनाकर ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूककर रही हंै। वे बताती हैं कि शुरुआत में 10-12 वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। बच्चे के जन्म के बाद उसे संभालने के लिए नौकरी छोड़ दी। कोविड के दौरान एक रिसर्च पढ़ रही थीं कि सेनेटरी नैपकिन में कितना कैमिकल आ रहा है, जिसका खमियाजा महिलाओं और पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है। इसी विषय पर और रिसर्च की तो सामने आया कि राजस्थान में अब भी बहुत से गांव हैं, जहां अभी तक सेनेटरी नैपकिन नहीं पहुंचे। उसके बाद ईको फ्रेंडली नैपकिन बनाना सीखा। पहले खुद ही ईको फ्रेंडली नैपकिन बनाए और अपने साथ कुछ महिलाओं को घंटे के हिसाब से काम पर रख लिया। धीरे-धीरे काम बढऩे लगा तो आस-पास की महिलाओं को भी रोजगार देना शुरू किया। उनका कहना है, ‘हालांकि मैं पहले से ही एक निजी संस्था में सेनेटरी नैपकिन अवेयरनेस के लिए काम कर रही थी। कोरोना के बाद पूरी तरह से इसी काम में जुट गई और अपने आस-पास छोटे-छोटे कस्बों को गोद लेने लग गई। हम हर माह मुफ्त नैपकिन उपलब्ध कराते हैं, महिलाओं में अब भी स्वास्थ्य के लिए प्रति जागरूकता की कमी है।Ó
ग्रामीण क्षेत्र में फैला रहीं अवेयरनेस
बाजार में जो नैपकिन आ रहे हैं, उनमें कैमिकल का इस्तेमाल होता है। लोग कैमिकल के प्रति इतना ज्यादा अवेयर ही नहीं है। सरकार की तरफ से मिलने वाला मैटीरियल भी अच्छा नहीं होता है। इससे संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है। यहां तक कि महिलाएं सर्वाइकल कैंसर जैसी गंभीर रोग का शिकार हो रही हैं।
़12 गांव की 25 से ज्यादा महिलाएं शामिल
आशा ने अपने काम में जयपुर के आस-पास के 12 गांवों की 25 से अधिक महिलाओं को शामिल किया, जो घरेलू हिंसा, दहेज के लिए प्रताडि़त और बाल विवाह का शिकार थीं। उन महिलाओं को अपने साथ लेकर ट्रेनिंग दी। ये महिलाएं बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हंै। इस पूरे काम को महिलाएं ही संभालती हैं और बनाने से लेकर बेचने तक का काम ये खुद करती हैं। इनका बनाया उत्पाद पूरे देश में जाता है। तीन साल में टर्नओवर दो करोड़ रुपए तक चला गया है।

गांव की बेटी प्रियंका पानी के जहाज का कर रहीं प्रबंधन

पचलंगी . जहां समाज में बेटियों की शिक्षा को आज भी हल्के में आंका जाता है। वहीं महिलाओं का विज्ञान व इंजीनियरिंग में विशेष योगदान है। उदयपुरवाटी उपखंड के छोटे से गांव जोधपुरा की बेटी प्रियंका पुत्री किशोरी लाल मीणा ने 2018 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी नागपुर से इलेक्ट्रिक एंड इलेक्ट्रॉनिक में इंजीनियरिंग कर यह साबित कर दिया कि गांव की बेटियां भी लक्ष्य लेकर निकलें तो पीछे नहीं रहतीं। जोधपुरा की बेटी प्रियंका मीणा इंजीनियरिंग कर वर्तमान में मुंबई में जहाज रानी निगम (शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) में प्रबंधक के पद पर सेवा दे रही हंै।
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प्रियंका ने बताया कि गांवों में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती है, इसके लिए आज भी दूर दराज कस्बों में जाकर विज्ञान विषय की पढ़ाई करनी पड़ती है जो आम आदमी के बजट के बाहर है। वहीं बेटियों के लिए घर से बाहर जाकर शिक्षा लेना बड़ा मुश्किल काम है। मैंने उच्च शिक्षा मुम्बई और नागपुर में ली है, हमेशा से ही इंजीनियरिंग में बढऩे का सपना रहा।

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