किराया नाम मात्र का
मंडी परिसर में सालों पहले व्यापारियों ने किराए पर या लीज पर दुकानें ली थी। उस समय किराया भी नाम मात्र का था। जो अब भी वर्तमान बाजार भाव के सामने गौण है। ऐसे में व्यापारी दुकानों को गोदाम के रूप में ही उपयोग करते हैं। वहां के कुछ व्यापारियों का कहना है कि किराएदारों ने तो आगे से आगे दुकानें किराए पर भी दे रखी है। दुकानें हो रही खण्डहर मंडी परिसर में किराए व लीज पर लेने वाले दुकानदार उनके रख-रखाव पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। मंडी परिसर में प्रवेश करने पर सामने बनी दुकानों के पीछे की तरफ आरसीसी के सरिये बाहर आ गए है। उसके आगे की दुकानें तो खण्डहर जैसी हो गई है। उनको देखकर लगता है सालों से दरवाजा तक नहीं खुला है। दुकानों व प्लेटफार्म पर पेड़ उग गए है।
इस कारण नहीं आते किसान
पाली क्षेत्र में ज्यादातर गेहूं व रायड़ा आदि की फसल होती है। इन दोनों के साथ अन्य फसलों के दाम मंडी में मिलने वाले समर्थन मूल्य की तुलना में बाजार में अधिक मिलते है। ऐसे में किसान मंडी में आने के बजाय बाजार में और गलियों में जाकर फसल बेचना अधिक पसंद करते है। वहीं कई व्यापारी भी कर बचने पर मंडी की तुलना में किसानों को अधिक राशि दे देते हैं। ऐसे में किसान मंडी तक नहीं आते।
इनका कहना है
राजस्थान में केन्द्रीय कृषि कानून लागू है। इससे व्यक्ति मंडी या बाहर किसी भी जगह पर व्यापार कर सकता है। मंडी के बाहर व्यापार करने पर उस पर मंडी का कोई नियंत्रण नहीं है। मंडी में व्यापार करने पर व्यापारी को 1.60 रुपए मंडी शुल्क व 1 रुपए कृषक कल्याण शुल्क देना होता है। जबकि मंडी की चारदीवारी के बाहर हम व्यापारी को कुछ नहीं पूछ सकते है। बीएल माथुर, सचिव, कृषि उपज मंडी, पाली