जयपुर। स्विस वैज्ञानिकों और चॉकलेट निर्माताओं ने स्वास्थ्यवर्धक और अधिक टिकाऊ चॉकलेट बनाने की एक रेसिपी विकसित की है, जिसमें चीनी की जगह अपशिष्ट पौधों के पदार्थ ले सकते हैं। नेचर फूड में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल फलियां लेने के बजाय कोको फली के गूदे और भूसी को मैश करके, वैज्ञानिकों ने एक मीठा और रेशेदार जैल बनाया है जो चॉकलेट में चीनी की जगह ले सकता है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि यह “संपूर्ण भोजन” की अप्रोच पारंपरिक चॉकलेट की तुलना में अधिक पौष्टिक उत्पाद बनाता है। इसमें कम भूमि और पानी का उपयोग होता है, जबकि यह मीठा खाने की लालसा को भी संतुष्ट करता है। ईटीएच ज्यूरिख के खाद्य प्रौद्योगिकीविद् और अध्ययन के प्रमुख लेखक किम मिश्रा ने कहा, “कोको फल मूल रूप से एक कद्दू है और अभी हम केवल बीज का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन उस फल में और भी बहुत सी अद्भुत चीजें हैं।”
वैज्ञानिकों ने पाया कि यह “संपूर्ण भोजन” की अप्रोच पारंपरिक चॉकलेट की तुलना में अधिक पौष्टिक उत्पाद बनाता है। इसमें कम भूमि और पानी का उपयोग होता है, जबकि यह मीठा खाने की लालसा को भी संतुष्ट करता है। ईटीएच ज्यूरिख के खाद्य प्रौद्योगिकीविद् और अध्ययन के प्रमुख लेखक किम मिश्रा ने कहा, “कोको फल मूल रूप से एक कद्दू है और अभी हम केवल बीज का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन उस फल में और भी बहुत सी अद्भुत चीजें हैं।”
गूदे का इस्तेमाल शोधकर्ताओं ने जैल बनाने के लिए कोको फल के अपशिष्ट गूदे और रस का उपयोग किया, जिसे पारंपरिक रूप से उपयोग की जाने वाली पाउडर क्रिस्टलीय चीनी के बजाय चॉकलेट में इस्तेमाल किया जा सकता है। शोधकर्ता कहते हैं कि आमतौर पर, चॉकलेट में नमी डालना पूरी तरह से वर्जित है क्योंकि इससे चॉकलेट खराब हो जाती हैं लेकिन उन्होंने इस नियम को दरकिनार किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह बनी चॉकलेट स्वास्थ्यप्रद और अधिक टिकाऊ थी, इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी।
सुखाने में होगी ऊर्जा की खपत अध्ययन में पाया गया कि एक प्रयोगशाला में नई विधि में 6% कम भूमि और पानी का उपयोग किया गया लेकिन प्लेनेट-हीट उत्सर्जन में 12% की वृद्धि हुई क्योंकि इसे अतिरिक्त सुखाना पड़ा, जिसमें बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत हुई। लेकिन इस प्रक्रिया को बढ़ाकर – और गूदे को धूप में सुखाकर या सौर पैनलों का उपयोग करके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में गिरावट आ सकती है।
सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वालों से एक गौरतलब है कि चॉकलेट सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक है। प्रति किलोग्राम चॉकलेट से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैस उतने ही वजह से मांस के बराबर है। मिश्रा और उनके सहयोगियों ने उत्पादन प्रक्रिया में अपशिष्ट को कम करने का प्रयास किया और पाया कि वे इसे सेहतमंद भी बना सकते हैं।