ना जाने क्यों?
अक्सर ही
इन तुहिन कणों की छांव में,
अजब सी धुंध की चादर लिए
सिमट- सिमट क्यों जाता है।
मेरा ये मासूम सा शहर! इस अजब सी धुंध से
अलसायी सी धूप है .
मुरझाई सी सांझा है,
बावरी सी हो चली है निशा।
अक्सर ही
इन तुहिन कणों की छांव में,
अजब सी धुंध की चादर लिए
सिमट- सिमट क्यों जाता है।
मेरा ये मासूम सा शहर! इस अजब सी धुंध से
अलसायी सी धूप है .
मुरझाई सी सांझा है,
बावरी सी हो चली है निशा।
डूब गई हर गली,
डूब गई हर डगर .
डूब रहा क्यों मेरा
मासूम सा शहर
इस अजब सी धुंध में .
न जाने क्यों ? घड़ी-घड़ी बढ़ रहे अंधियारे को,
घूंट घूंट हम पी रहे या जी रहे
चित्र सारे धुंधले धुधले
से हो गए
ज्यों किसी अजब नशे में
जी रहे
डूब गई हर डगर .
डूब रहा क्यों मेरा
मासूम सा शहर
इस अजब सी धुंध में .
न जाने क्यों ? घड़ी-घड़ी बढ़ रहे अंधियारे को,
घूंट घूंट हम पी रहे या जी रहे
चित्र सारे धुंधले धुधले
से हो गए
ज्यों किसी अजब नशे में
जी रहे
इस अजब सी धुंध से
पांव उठ ना पा रहे
ज्यूं हो थकन सी
बेबस आंखें झर रहीं
ज्यूं हो जलन सी
जिस सभ्यता की दे रहे
हैं हम दुहाइ
उसी पर छा रहे विपत्ति के
क्यो धुंधलके ?
न जाने क्यों ?
पांव उठ ना पा रहे
ज्यूं हो थकन सी
बेबस आंखें झर रहीं
ज्यूं हो जलन सी
जिस सभ्यता की दे रहे
हैं हम दुहाइ
उसी पर छा रहे विपत्ति के
क्यो धुंधलके ?
न जाने क्यों ?
मेरा तुम्हारा यह शहर
चीख-चीख पुकारता।
गुजारिशें हैं कर रहे
खग पात और लता
सुरसा सा मुख फैला कर
धुंध बढ़ा आ रहा।
हौले हौले प्राणी हो विवश
क्यों इधर-उधर भागता?
न जाने क्यों ? इस अजब सी धुंध को
अब और नहीं बढने दो
रोक लो,
इस काली धुंध को,
लेकर एक प्रण।
चीख-चीख पुकारता।
गुजारिशें हैं कर रहे
खग पात और लता
सुरसा सा मुख फैला कर
धुंध बढ़ा आ रहा।
हौले हौले प्राणी हो विवश
क्यों इधर-उधर भागता?
न जाने क्यों ? इस अजब सी धुंध को
अब और नहीं बढने दो
रोक लो,
इस काली धुंध को,
लेकर एक प्रण।
रोक लो!
इस प्रदूषण को
लेकर के एक प्रण।
जुडि़ए पत्रिका के ‘परिवार’ फेसबुक ग्रुप से। यहां न केवल आपकी समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि यहां फैमिली से जुड़ी कई गतिविधियांं भी देखने-सुनने को मिलेंगी। यहां अपनी रचनाएं (कहानी, कविता, लघुकथा, बोधकथा, प्रेरक प्रसंग, व्यंग्य, ब्लॉग आदि भी) शेयर कर सकेंगे। इनमें चयनित पठनीय सामग्री को अखबार में प्रकाशित किया जाएगा। तो अभी जॉइन करें ‘परिवार’ का फेसबुक ग्रुप। join और Create Post में जाकर अपनी रचनाएं और सुझाव भेजें। patrika.com
इस प्रदूषण को
लेकर के एक प्रण।
जुडि़ए पत्रिका के ‘परिवार’ फेसबुक ग्रुप से। यहां न केवल आपकी समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि यहां फैमिली से जुड़ी कई गतिविधियांं भी देखने-सुनने को मिलेंगी। यहां अपनी रचनाएं (कहानी, कविता, लघुकथा, बोधकथा, प्रेरक प्रसंग, व्यंग्य, ब्लॉग आदि भी) शेयर कर सकेंगे। इनमें चयनित पठनीय सामग्री को अखबार में प्रकाशित किया जाएगा। तो अभी जॉइन करें ‘परिवार’ का फेसबुक ग्रुप। join और Create Post में जाकर अपनी रचनाएं और सुझाव भेजें। patrika.com