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अनदेखी: एशिया की सबसे बड़ी क्लाइंबिंग वॉल में नहीं ट्रेनर, टूट रहा आदिवासी बच्चों का ख्वाब

क्लाइंबिंग वॉल पर 6 करोड़ खर्च, लेकिन सडक़ ही नहीं बनाई, जर्जर मार्ग से पहुंचते हैं लोग

शाहडोलAug 09, 2024 / 12:14 pm

Ramashankar mishra

शहडोल. आदिवासी इलाकों में खेल प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए विचारपुर गांव में 6 करोड़ रुपए की लागत से एशिया की सबसे बड़ी स्पोट्र्स क्लाइंबिंग वॉल तैयार की गई है। फ्रांस की कंपनी ने 3 क्लाइंबिंग वॉल यूनिट के साथ भले ही शानदार शुरुआत की हो लेकिन नन्हे खिलाडिय़ों के खेल का सफर अधूरा है। आदिवासी बच्चों के लिए न तो बेहतर पढ़ाई की व्यवस्था है और न ही खेल की बारीकियां सिखाने के लिए कोई ट्रेनर हैं। ट्रेनर न होने की वजह से कई महीनों से आदिवासी छात्र यहां प्रैक्टिस ही नहीं कर पा रहे हैं। इधर अन्य खेलों के लिए ग्राउंड भी व्यवस्थित नहीं है। जगह-जगह चट्टान हैं और समतल नहीं है। इतना ही नहीं, खिलाडिय़ों की पढ़ाई के लिए स्कूल भी नहीं है। गांव की ही स्कूल में बच्चों को भेजा जाता है। यहां 8वीं के बाद स्कूल ही नहीं है, इस स्थिति में 8वीं पास होने के बाद बच्चों का खेल भी छूट जाता है। इसके कारण परिजन भी क्रीड़ा परिसर में कुछ साल के लिए बच्चों को भेजने से कतराते हैं। शिक्षा का बुनियादी ढांचा कमजोर होने की वजह से आदिवासी बच्चों का भविष्य दांव पर है।

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं यहां के आदिवासी खिलाड़ी
आदिवासी अंचल के बच्चे क्लाइंबिंग वॉल प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रदर्शन कर चुके हैं। 2023 में यहां के 11 छात्र उदयपुर में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गए थे। गुजरात और राजस्थान के खिलाडिय़ों को हराकर फाइनल तक पहुंचे थे, बाद में महाराष्ट्र टीम से हार गए थे।

3 साल की ट्रेनिंग व्यर्थ
क्रीड़ा परिसर विचारपुर के खिलाडिय़ों को गांव की स्कूल में भेजा जाता है। यहां 8वीं तक की पढ़ाई होती है। बैटरी टेस्ट व चयन के बाद छात्रावास में 6 से 12वीं तक के बच्चों को रखकर ट्रेनिंग दी जा सकती है। 8वीं के बाद स्कूल की व्यवस्था न होने से क्रीड़ा परिसर छूट जाता है और बच्चे खेल से भी दूर हो जाते हैं। इस स्थिति में क्लाइंबिंग वॉल के लिए 3 साल तक बच्चों को दी जाने वाली ट्रेनिंग भी व्यर्थ हो जाती है।

जापान का सिस्टम लेकिन क्रीड़ा परिसर तक जाने सडक़ ही नहीं
स्पोट्र्स काम्प्लेक्स में 350 दर्शकों के लिए बैठक व्यवस्था है लेकिन अव्यवस्था ऐसी है कि विचारपुर क्रीड़ा परिसर तक पहुंचने के लिए सडक़ ही नहीं है। कुछ जगहों पर कॉलोनाइजरों ने कब्जा कर रखा है। ऐसा भी नहीं है कि अधिकारियों की जानकारी में न हो। कई बार बड़े अधिकारी भी दौरे पर गए। सडक़ का मुद्दा भी उठा लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया। बारिश में क्रीड़ा परिसर तक पहुंचना मुश्किल हो जाताहै।

50 सीट बढ़ी, कई जिलों से आएंगे छात्र
विचारपुर क्रीड़ा परिसर में अभी तक 50 सीट में प्रवेश लिया जा रहा था। इस शिक्षण सत्र से सीट बढ़ाते हुए 100 सीट कर दी गई हैं। इस स्थिति में शहडोल, उमरिया, अनूपपुर और डिंडौरी के अलावा कई अन्य जिलों से भी छात्र आएंगे। क्लाइंबिंग वॉल की वजह से छात्रों का भी रुझान इस ओर ज्यादा रहता है।

ट्रेनर के दोनों पद खाली, डरते हैं छात्र
शुरुआत में यहां भोपाल से ट्रेनर को भेजा गया था। कुछ दिन ट्रेनिंग भी कराई थी। बताया गया कि ट्रेनर के लिए परिसर में दो पद स्वीकृत हैं लेकिन दोनों रिक्त है। आदिवासी बच्चे क्लाइंबिंग वॉल में चढऩे से डरते हैं। बिना ट्रेनर व सुरक्षा क्लाइंबिंग वॉल में चढऩे से बच्चों को जान का भी खतरा रहता है।

खासियत: प्रदेश में 3 वॉल वाली पहली यूनिट
मध्यप्रदेश में एक साथ 3 क्लाइंबिंग वॉल वाली ये पहली यूनिट है। पहली बॉल स्पीड क्लाइंबिंग, दूसरी बोल्ड्रिंग और तीसरी लोड क्लाइंबिंग वॉल है। एक साथ 3 क्लाइंबिंग वॉल की यूनिट प्रदेश में और कहीं नहीं है। इसके अलावा दयानंद स्कूल व भोपाल की बीयू में यूनिट है।

इनका कहना है
आदिवासी बच्चों की खेल प्रतिभा को निखारने लगातार प्रयास कर रहे हैं। ट्रेनर के लिए व्यवस्था कराई जाएगी। स्कूल व सडक़ के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों की बैठक लेंगे।
बीएस जामोद, कमिश्नर शहडोल

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