पति ताड़ पर चढ़ते हैं, पत्नी धारण करती है विधवा वेश
ये महिलाएं पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर समेत पड़ोसी राज्य बिहार के कुछ जिलों की हैं। गछवाहा समुदाय की ये महिलाएं पति की सलामती के लिए मई से लेकर जुलाई तक तीन महीने के लिये विधवा का जीवन बसर कर सदियों पुरानी अनूठी प्रथा का पालन करती हैं।
गछवाहा समुदाय के पुरूष साल के तीन महीने यानी मई से जुलाई तक ताड़ी उतारने का काम करते हैं। उसी कमाई से वे अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं। ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने का काम काफी जोखिम भरा माना जाता है। पचास फिट से ज्यादा ऊंचाई के सीधे ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने के दौरान कई बार व्यक्ति की जान भी चली जाती हैं। ताड़ी उतारने के मौसम में इस समुदाय की महिलायें अपनी पति की सलामती के लिये देवरिया से तीस किलोमीटर दूर गोरखपुर जिले में स्थित तरकुलहां देवी के मंदिर में चैत्र माह में अपनी सुहाग की निशानियां रेहन रख कर अपने पति की सलामती की मन्नत मांगती हैं। इन तीन माह तक ये औरतें अपने घरों में उदासी का जीवन जीती हैं। ताड़ी उतारने का समय समाप्त होने के बाद तरकुलहां देवी मंदिर में गछवाहा समुदाय की औरतें नाग पंचमी के दिन एकत्रित होकर पूजा करने के बाद सामूहिक गोठ का आयोजन करती हैं। जिसमें विवाहिता के रूप में श्रंगार कर खाने-पीने का आयोजन कर मंदिर में आशीर्वाद लेकर अपने परिवार में प्रसन्नता पूर्वक जाती हैं। गछवाहा समुदाय वास्तव में पासी जाति से होते हैं और सदियों से यह तबका ताड़ी उतारने के काम में लगा है, हालांकि अब इस समुदाय में भी शिक्षा का स्तर बढता जा रहा है और इस समुदाय के युवा इस पुश्तैनी धंधे को छोड़कर अन्य व्यवसाय तथा कार्य कर रहे हैं।