जयपुर. प्रदेश में साइबर ठगी के चौंकाने वाले आंकड़े से सरकार ने आंख फेर रखी है। प्रदेश में साइबर क्राइम पर नियंत्रण के लिए खोले गए 32 स्पेशल थाने की स्थिति देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है। ये थाने महीनों बाद भी नियमित रूप से संचालित नहीं हो सके। स्थिति यह है कि ठगी के गढ़ भरतपुर, धौलपुर व अलवर जैसे जिलों के साइबर थानों में प्रभारी उप अधीक्षक की पोस्टिंग ही नहीं की गई। साइबर अपराध की तफ्तीश के लिए भरतपुर व धौलपुर जिलों के साइबर थाने में तो निरीक्षक भी नहीं लगा रखा। इनकी तरह प्रदेश के नौ थाने में प्रभारी उप अधीक्षक नहीं है।
गत सरकार ने दिसंबर 2022 में 32 जिलों में स्पेशल साइबर थाने खोले गए थे। इसका जिम्मा उप अधीक्षक स्तर के पुलिस अधिकारी को दिया गया। थाने खुले, लेकिन ज्यादातर काम कागजी ही रहे। नई सरकार आने के बाद भी इन थानों को प्रभारी अधिकारी नहीं मिले।
कौन करे जांच, 19 थानों में इंस्पेक्टर ही नहीं
प्रदेश के 32 थानों में से 19 ऐसे हैं, जहां जांच अधिकारी (पुलिस निरीक्षक) ही नहीं है। साइबर एक्ट के तहत इन मामलों की तफ्तीश निरीक्षक या इससे वरिष्ठ अधिकारी ही कर सकता है। जबकि गत सरकार और वर्तमान सरकार के जिम्मेदारों ने अधिकतर साइबर थानों में पुलिस निरीक्षक की पोस्टिंग ही नहीं की। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि भरतपुर और धौलपुर में तो उप अधीक्षक की तरह निरीक्षक भी नहीं लगाया। भरतपुर में रेंज आईजी ने अपने स्तर पर थाने की जिम्मेदारी उप अधीक्षक एसटी-एससी सैल के प्रभारी नितीराज को दी है। इसी तरह धौलपुर में भी यह जिम्मेदारी किसी और अधिकारी को दी गई है। जैसलमेर, डूंगरपुर, राजसमंद, उदयपुर ऐसे जिले हैं जहां साइबर थाना तो खोल दिया, लेकिन वहां न प्रभारी अधिकारी है न ही तफ्तीश के लिए पुलिस निरीक्षक। अलवर की स्थिति भी ऐसी ही है। यहां प्रभारी उप अधीक्षक की जिम्मेदारी सीओ ट्रैफिक संजय आर्य को दी गई है।Hindi News / Special / ठगों को कैसे पकड़ें, न साइबर थानाधिकारी और न जांच के लिए निरीक्षक