नई दिल्ली। सायरा बानो उन मशहूर अभिनेत्रियों की गिनती में शुमार रही हैं, जो अपनी खूबसूरती और अभिनय प्रतिभा से सभी का दिल जीतने में सफल रही हैं। उनके अंदाज-ए-बयां ने लोगों को अपना मुरीद बनाया है। सायरा का जन्म 23 अगस्त, 1944 को भारत में हुआ था। उनकी मां नसीम बानो भी अपने समय की मशहूर अभिनेत्री रही हैं। उनके पिता मियां एहसान-उल-हक फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने मुंबई में ‘फूल’ और पाकिस्तान में ‘वादा’ नामक फिल्म का निर्माण किया।
शायरा का अधिकांश बचपन लंदन में बीता, जहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौटीं। स्कूल से ही उन्हें अभिनय से लगाव था और उन्हें वहां अभिनय के लिए कई पदक मिले थे। सायरा कहती हैं कि 12 साल की उम्र से ही वह अल्लाह से प्रार्थना करती थीं कि वह उन्हें अम्मी जैसी हीरोइन बनाए।
उल्लेखनीय है कि 17 साल की उम्र में ही सायरा बानो ने बॉलीवुड में कदम रख दिया। उन्होंने 1961 में शम्मी कपूर के साथ फिल्म ‘जंगली’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उन्होंने इस फिल्म में अपनी अदाओं के ऐसे जलवे बिखेरे कि उनकी छवि एक रोमांटिक हीरोइन की बन गई।
उनकी यह फिल्म अपने जमाने की हिट फिल्मों में शुमार हुई। फिर क्या कहना था, सायरा बानो का करियर चल पड़ा। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। इसके बाद सायरा बानो ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया। 60 और 70 के दशक में सायरा बानो एक सफल अभिनेत्री के रूप में बॉलीवुड में जगह बना चुकी थीं।
वर्ष 1968 की फिल्म ‘पड़ोसन’ ने उन्हें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। इस फिल्म ने उनके करियर को जैसे पंख लगा दिए। इसके बाद शायरा ने दिलीप कुमार के साथ ‘गोपी’, ‘सगीना’, ‘बैराग’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया। सायरा ने 11 अक्टूबर, 1966 को 22 साल की उम्र में अपने से दोगुने उम्र के दिलीप कुमार से शादी की थी। उस समय दिलीप कुमार 44 साल के थे। दोनों की मुलाकात, प्यार और फिर शादी की कहानी बिल्कुल फिल्मी हैं।
बॉलीवुड के प्रेमी जोड़ों की जब भी बात की जाती है तो सायरा बानो और दिलीप कुमार का नाम जरूर आता है। शादी के बाद भी सायरा ने फिल्मों में काम जारी रखा। दिलीप साहब के अलावा वह दूसरे नायकों की भी नायिका बनती रहीं। दिलीप कुमार और सायरा इन दिनों बुढ़ापे की दहलीज पर हैं। दिलीप कुमार अल्जाइमर की बीमारी से पीडि़त हैं और सायरा उनकी एकमात्र सहारा हैं। हर कहीं दोनों एक साथ आते-जाते हैं और एक-दूसरे का सहारा
बने हुए हैं। दोनों को कई पार्टियों और फिल्मी प्रीमियर के मौके पर साथ देखा जाता है। सायरा अपने खाली समय को समाज सेवा में लगाती हैं। सायरा ने ‘जंगली’ (1961), ‘शादी’ (1962),’ब्लफ मास्टर’ (1963),’दूर की आवाज’ (1964),’आई मिलन की बेला’ (1964),’अप्रैल फूल’ (1964),’ये जिंदगी कितनी हसीन है’ (1966),’प्यार मोहब्बत’ (1966),’शागिर्द’ (1966),’दीवाना’ (1967),’अमन’ (1967),’पड़ोसन’ (1968),’झुक गया आसमान’ (1968),’आदमी और इंसान’ (1969), ‘पूरब और पश्चिम’ (1970),’गोपी’ (1970),’बलिदान’ (1971),’विक्टोरिया नं. 203′ (1972),’दामन और आग’ (1973),’आरोप’ (1973),’ज्वार भाटा’ (1973),’पैसे की गुडिय़ा’ (1974),’दुनिया’ (1984), ‘फैसला’ (1988) जैसी फिल्मों में अभिनय किया।
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