इन उपायों को जीवन का हिस्सा बना लें
1. बाजार जाते वक्त प्लास्टिक की जगह कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करें, इससे प्लास्टिक का खतरा कम होगा।
2. दफ्तर, स्कूल या सफर पर जाते वक्त प्लास्टिक की बोतल की बजाय घर से धातु की बोतल या कैंपर ले जाएं।
3. गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें।
4. सरकार प्राथमिकता के साथ पर्यावरण सुरक्षा के लिए कठोर नियम बनाए। पोस्टर-बैनर और मीडिया के जरिए जागरूता फलाए।
5. प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन पर सख्ती से रोक लगाए। सख्ती के बिना पर्यावरण का मूल्य समझ नहीं आएगा।
1. बाजार जाते वक्त प्लास्टिक की जगह कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करें, इससे प्लास्टिक का खतरा कम होगा।
2. दफ्तर, स्कूल या सफर पर जाते वक्त प्लास्टिक की बोतल की बजाय घर से धातु की बोतल या कैंपर ले जाएं।
3. गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें।
4. सरकार प्राथमिकता के साथ पर्यावरण सुरक्षा के लिए कठोर नियम बनाए। पोस्टर-बैनर और मीडिया के जरिए जागरूता फलाए।
5. प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन पर सख्ती से रोक लगाए। सख्ती के बिना पर्यावरण का मूल्य समझ नहीं आएगा।
खाने की बर्बादी रोकें
फूड वेस्ट से जहां अनाज की बर्बादी होती है, वहीं इसके लैंडफिल कचरे से मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक हैं। फूड वेस्ट कम करें, यदि हुआ है तो कई तरह के ऐप्स के जरिए इसे जरूरतमंदों तक पहुंचाने का प्रयास करें। यदि वेस्ट होता ही है तो इससे खाद बनाया जा सकता है।
पिपलांत्री जैसा जज्बा जरूरी
राजस्थान के राजसमंद जिले का पीपलांत्री गांव पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर उदाहरण है, यहां कन्या के जन्म पर 51 पौधे लगाए जाते हैं। हर गांव-कस्बा, शहर इस मंंत्र को आत्मसात कर ले। हर खुशी के मौके पर पौधरोपण और उसकी सुरक्षा का संकल्प लें, प्रकृति चहक उठेगी और जीवन महक उठेगा।
राजस्थान के राजसमंद जिले का पीपलांत्री गांव पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर उदाहरण है, यहां कन्या के जन्म पर 51 पौधे लगाए जाते हैं। हर गांव-कस्बा, शहर इस मंंत्र को आत्मसात कर ले। हर खुशी के मौके पर पौधरोपण और उसकी सुरक्षा का संकल्प लें, प्रकृति चहक उठेगी और जीवन महक उठेगा।
कचरा जलाने से करें तौबा
लोग घरों के आसपास सफाई तो करते हैं, लेकिन उसको जलाकर पर्यावरण को बड़े घाव दे रहे हैं। कचरे में खासकर प्लास्टिक के रैपर और थैलियां को जलाने से कार्बन डाइ ऑक्साइड के अलावा मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।
लोग घरों के आसपास सफाई तो करते हैं, लेकिन उसको जलाकर पर्यावरण को बड़े घाव दे रहे हैं। कचरे में खासकर प्लास्टिक के रैपर और थैलियां को जलाने से कार्बन डाइ ऑक्साइड के अलावा मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।
स्विटजरलैंड से सीखें
यूरोप का स्विटजरलैंड दुनिया का सबसे बड़ा ईको फे्रंडली देश है। ये अकेला देश है, जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा कानून बने हैं और इसे नुकसान पहुंचाने वालों को दंड का प्रावधान है। जानिए क्यों आगे है स्विटजरलैंड-
-रिसायकिलिंग : प्लास्टिक और अन्य कचरे को अलग रखते हैं, ताकि रिसायकिलिग आसान हो।
–प्लास्टिक बैग पर चार्ज : इसलिए लोग घर से जूट या कपड़े के बैग ले जाने लगे।
–पब्लिक ट्रांसपोर्ट : खुद के वाहनों से अधिक मेट्रो या अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग।
-रिन्यूएबल एनर्जी : कोयले का उपयोग सीमित, पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी।
–नागरिकों का जज्बा : देश के हर नागरिक में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का जज्बा।
यूरोप का स्विटजरलैंड दुनिया का सबसे बड़ा ईको फे्रंडली देश है। ये अकेला देश है, जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा कानून बने हैं और इसे नुकसान पहुंचाने वालों को दंड का प्रावधान है। जानिए क्यों आगे है स्विटजरलैंड-
-रिसायकिलिंग : प्लास्टिक और अन्य कचरे को अलग रखते हैं, ताकि रिसायकिलिग आसान हो।
–प्लास्टिक बैग पर चार्ज : इसलिए लोग घर से जूट या कपड़े के बैग ले जाने लगे।
–पब्लिक ट्रांसपोर्ट : खुद के वाहनों से अधिक मेट्रो या अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग।
-रिन्यूएबल एनर्जी : कोयले का उपयोग सीमित, पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी।
–नागरिकों का जज्बा : देश के हर नागरिक में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का जज्बा।
(दुबई में रहने वाले जयपुर के अब्दुल मुकीत से पुष्पेश शर्मा की बातचीत)