बी आर अंबेडकर की 125वीं जयंती
14 अप्रेल, 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में जन्में भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे
नई दिल्ली। भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर एक विश्वस्तर के विधिवेत्ता थे जिनका जन्म 14 अप्रेल, 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई मुर्बादकर सकपाल के घर हुआ था। उनके पिता अंग्रेजों की फौज में सुबेदार थे। 14 भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव किया जाता था। लोग उन्हें आमतौर पर बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से पुकारते थे। वह विधिवेत्ता के साथ साथ अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक भी थे। वह दलित बौद्ध आंदोलन के प्रेरक थे। वह स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री थे।
वह भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे। उन्होंने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया था। उन्होंने महिलाओं और मजदूरों के हकों के लिए भी आवाज उठाई। अंबेडकर उन चुनिंदा दलितों में से एक थे जिन्होंने कॉलेज की डिग्री हासिल की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से कई डॉक्टे्रट डिग्रियां भी हासिल की। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा हासिल की।
स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद अंबेडकर और अन्य पिछड़ी जाति के बच्चों को स्कूलों में अलग बिठाया जाता था। शिक्षक इन बच्चों पर न तो ध्यान देते थे और न ही कोई सहायता दी जाती थी। अंबेडकर सहित इन बच्चों को कक्षा के अंदर बैठने बैठने नहीं दिया जाता था।
उनके पिता 1894 में फौज से सेवानिवृत हो गए और इसके दो साल बाद परिवार सतारा आकर बस गया। यहां आने के कुछ समय बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया। बहुत मुश्किल परिस्थितियों में उनकी चाची ने बच्चों की देखभाल की। 14 बच्चों में तीन बेटे-बलराम, आनंदराव और भीमराव, जबकि बेटियों में मंजुला और तुलासा ही जीवित रह पाए। अपने भाई-बहनों में केवल बाबासाहेद ही शिक्षा प्राप्त कर पाए। उनका मौलिक उपनाम अंबावाडेकर रत्नागिरी जिले में स्थित पैतृक गांव अंबावाडे पर रखा गया था। बाबासाहेब के ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबडेकर उन्हें बेहद पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने अपना उपनाम अंबेडकर उनके स्कूल रिकॉर्ड में लिख दिया।
राजनैतिक जीवन
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील के रूप में की। बाद में वह राजनीति में उतर आए। 1935 में अंबेडकर को सरकारी प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होंने दो वर्ष तक इस पद पर रहे। इसके चलते वह बांबे (अब मुंबई) में बस गए। उन्होंने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने 1937 में हुए केंद्रीय विधानसभा चुनावों में 15 सीटें जीती। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘जाति के विनाशÓ भी इसी वर्ष प्रकाशित की जो न्यूयॉर्क में लिखे उनके शोधपत्र पर आधारित थी। किताब में उन्होंने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने निचले तबके के लोगों को महात्मा गांधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने पर कांग्रेस के फैसले की कड़ी आलोचना की।
अंबेडकर ने 1941 और 1945 के बीच बड़ी ंसंख्या में अत्यधिक विवादास्पद पुस्तकें और पर्चें प्रकाशित किए। इनमें शॉट्स ऑन पाकिस्तान भी शामिल है जिसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की।
संविधान निर्माण
अपने विवादास्पद विचारों, गांधी एवं कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके चलते 15 अगस्त, 1947 में देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त, 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अंबेडकर ने संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल का इस्तेमाल किया, लेकिन संविधान की भावना भारतीय है। भारतीय संविधान को 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने मौलिक रूप से अपना लिया। अंबेडकर ने 1952 के आम चुनाव में लोकसभा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन वह यह चुनाव हार गए। इसी साल उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया और अपनी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।
Hindi News / Special / बी आर अंबेडकर की 125वीं जयंती