कुछ लोग बेहद छोटे-से समय में इतिहास बदल देते हैं। ऎसे ही लोगों में शुमार वी.पी. सिंह ने अपने एक वर्ष से भी कम समय के प्रधानमंत्री कार्यकाल में आरक्षण बिल पास करके भारत के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने में भूचाल ला दिया।
आज ही के दिन 25 जून 1931 को मांडा के राजपरिवार में जन्मे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने युवावस्था में ही राजनीति में शामिल हो गए। 1969 में वह पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर जीत कर उत्तरप्रदेश विधानसभा में विधायक बने। इसके बाद वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वस्त बने और वाणिज्य मंत्री के रूप में देश को अपनी सेवाएं दी।
अपने राजनीतिक जीवन में सफलता की सीढियां चढ़ते हुए वह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। हालांकि वह राजीव गांधी के विश्वस्त साथियों में गिने जाते थे परन्तु बदलते राजनीतिक हालातों ने उन्हें कांग्रेस के खिलाफ खड़ा कर दिया।
कांग्रेस से परेशान जनता को वी.पी. सिंह ने लोकलुभावन सपने दिखाए और गठबंधन सरकार बनाते हुए 2 दिसम्बर 1989 को देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही तुरंत दलित जातियों के लिए आरक्षण बिल पास किया जिसने पूरे देश को हिला दिया। इस बिल ने पूरे देश को दलित आरक्षण वर्सेज योग्यता का अधिकार के संघर्ष में बदल दिया। इस दौरान सैंकड़ों युवाओं ने आरक्षण बिल के विरोध में आत्मदाह कर लिया परन्तु बिल वापस नहीं लिया गया।
इसके तुरंत बाद ही भाजपा की राममन्दिर रथयात्रा को रूकवाने के कारण वी.पी. सिंह से सहयोगी दलों ने समर्थन वापिस ले लिया और इनकी सरकार 10 नवम्बर 1990 को गिर गई। सरकार जाने के साथ ही वी.पी. सिंह भी इतिहास का हिस्सा बन गए। हालांकि उनके लाए आरक्षण बिल ने आधुनिक भारत को पूरी तरह से बदल दिया।
मांडा के राजा नाम से मशहूर वी.पी. सिंह का अपोलो हॉस्पिटल में बोनमैरो कैंसर से लड़ते हुए 27 नवम्बर 2008 को निधन हो गया।
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