कुछ समय खेतड़ी हाउस में भी बिताया
जानकारों के अनुसार चंपा गुफा में निवास करने के दौरान स्वामी से किशनगढ़ रियासत के मुंशी फैज अली ने मुलाकात की और उन्होंने स्वामी जी को किशनगढ़ कोठी चलने का आग्रह किया। जिनकी बात मानकर वे वहां गए। किशनगढ़ कोठी में खेतड़ी के तत्कालीन दीवान जगमोहन लाल स्वामी से मिले। बताया जाता है कि कुछ समय स्वामी खेतड़ी हाउस में भी निवासरत रहे। इस प्रकार स्वामी विवेकानंद का माउंट आबू प्रवास यादगार बन गया।मित्र को यहीं से पत्र लिखकर मन की पीड़ा व्यक्त की
माउंट आबू स्थित रामकृष्ण आश्रम सूत्रों के अनुसार विवेकानंद की ओर से शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व अपने एक मित्र गोविंद सहाय को पत्र लिखकर मन की पीड़ा व्यक्त की थी। उन्होंने लिखा कि मेरे देश का युवा सोया हुआ है, मैं उसे जगाना चाहता हूं। किसी के सामने सिर मत झुकाना, तुम अपनी अंतस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते। यह भी पढ़ें
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ईश्वरीय अस्तित्व की महसूसता को किया ध्यान
स्वामी विवेकानंद ने साधना के दौरान आत्मा, परमात्मा, प्रकृति को बहुत नजदीक से समझने व समझाने की कोशिश की। भारतीय पुरातन संस्कृति व ईश्वरीय अस्तित्व की महसूसता को लेकर उन्होंने यहां गहन ध्यान, तपस्या की। विवेकानंद के अनुसार जितनी मानवीय नैतिक प्रवृत्ति उन्नत होती है, उतना ही व्यक्ति गहन व प्रत्यक्ष अनुभव कर सकता है। जिसका एकमात्र साधन तपस्या है। तपोमय जीवन के लिए इच्छा शक्ति बलवती होनी चाहिए।युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का नाम जेहन में आते ही एक अक्षय ऊर्जा का मन संचार होने लगता है। उनका जीवन चरित्र युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। उनकी ऊर्जावान आनंदमय वाणी आत्मा को सत्य का साक्षात्कार कराने के लिए झकझोर देती थी। विवेकानंद ने एक बार कहा था कि मैं जो देकर जा रहा हूं, वह भविष्य के लिए मानवीय जीवन में अथाह शक्ति संचार करने की संजीवनी है। जब उनके बारे में साहित्य का अध्ययन किया जाता है तो लगता है उनकी वाणी रूपी सुरसरिता के माध्यम से प्रवाहित ऊर्जा हजार वर्ष नहीं अपितु युगों के लिए है। यह भी पढ़ें