सैकड़ों आदिवासियों के इस गुमनाम, लहूलुहान, रोंगटे खड़े करने वाली शहादत को आज 102 साल पूरे हो गए है, अर्थात 103वां उन शहीदों का बलिदान दिवस है। इतिहास में आदिवासियों के इस आजादी के आन्दोलन में हुए लहूलुहान बलिदान एवं शहादत को उचित स्थान नहीं मिला। आदिवासियो के आजादी के आन्दोलन में हुए भारी नरसहार शहादत एवं आगजनी की यह घटना उनके लोकगीतों में समाहित है ।
भूलू ने वालोरियू…भूलूं गोम बेले रे… धोमो भाईयो… धोमजो…गोरों गोला झीके रे… भूलूं बेले… भूलूं बेले… भूलूं गोम बेले रे…आज लिलूडी बडली नामक स्थान पर शहीद स्मारक बनाया जा रहा है