बेशक आबूरोड तीन दशक में ‘जीरो इंडस्ट्री एरियाÓ के अभिशाप से मुक्त होकर औद्योगिक विकास की राह पर चल तो पड़ा, लेकिन इस औद्योगिक विकास की आड़ में कुछ उद्यमियों ने प्रदूषण के रूप में इसके दामन पर दाग लगाना शुरू कर दिया।
Becoming tainted over to Abu Road
बेशक आबूरोड तीन दशक में ‘जीरो इंडस्ट्री एरियाÓ के अभिशाप से मुक्त होकर औद्योगिक विकास की राह पर चल तो पड़ा, लेकिन इस औद्योगिक विकास की आड़ में कुछ उद्यमियों ने प्रदूषण के रूप में इसके दामन पर दाग लगाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला जारी है। रफ्ता-रफ्ता हाल यह हो रहा है कि प्रदूषण की समस्या न सिर्फ विकट बनती जा रही है वरन् नासूर का रूप लेने लगी है। नासूर बनती इस समस्या से आसपास के लोगों को निजात दिलाने के लिए जिम्मेदार जिला प्रशासन, रीको, पुलिस व राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मौन धारण कर लिया है। जब भी प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठती है तो जिम्मेदार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपते हुए मामले का पटाक्षेप कर लेते हैं।
भू-जल हो रहा है प्रदूषित
रीको ग्रोथ-सेन्टर में बोरवैल कर केमिकल फैक्ट्रियों का अपशिष्ट सीधे जमीन में उड़ेलने का मामला रीको प्रबंधन पकड़ चुका है। जमीन में उड़ेले अपशिष्ट से रीको कॉलोनी के जलापूर्ति के कुएं का पानी प्रदूषित होने पर रीको सप्ताहभर तक चौबीसों घंटे मोटर चलाकर कुएं का पानी खाली करवा चुका है। बरसाती नालों में केमिकल उड़ेलते समय टैंकर पकड़कर रीको के हवाले कर चुका है। जाहिर है ऐसी कारगुजारियों से भू-जल प्रदूषित हो रहा है। कुओं, बोरवैल, हैण्डपम्पों का पानी प्रदूषित होने पर मावल, आवल, वासड़ा, खारा, भैंसासिंह, आम्बा, चंद्रावती आदि के ग्रामीण विरोध-प्रदर्शन भी कर चुके है। केमिकल फैक्ट्रियों का अपशिष्ट सीधा चंद्रावती की सेवरणी नदी में छोडऩे से हजारों की तादाद में मछलियां कालकवलित हो चुकी हैं। कार्रवाई के नाम पर रीको ने दो फैक्ट्रियों को महज नोटिस जारी कर दिए। एकाध फैक्ट्री का बिजली-पानी का कनेक्शन काट दिया गया।
पायरोलिसिस प्लांट से वायु प्रदूषण
पुराने टायरों से तेल निकालने की इकाइयां गुजरात में बंद करवाई गई तो उन उद्यमियों ने सीमा पर स्थित आबूरोड का रूख कर लिया। इनके धुएं से आसपास के गांवों में वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होने पर ग्रामीण, ग्रोथ सेन्टर की फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिक, भारतीय किसान संघ, ग्रोथ सेन्टर में स्थित शैक्षिक संस्थानों के छात्र विरोध-प्रदर्शन कर चुके है। फरवरी, 2014 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी मौके पर आए। एकाध फैक्ट्री को सील किया, पर बाद में फिर से पूर्ववत हालात हो गए। तत्कालीन एसडीएम जितेन्द्र सोनी ने कई प्लान्ट्स बंद भी करवा दिए थे, लेकिन बाद में वे सारे फिर से शुरू हो गए। कितने पायरोलिसिस प्लांट्स बिना क्न्सेन्ट टू एस्टाब्लिश व कन्सेन्ट टू ऑपरेट के बिना चल रहे है, स्थानीय स्तर पर किसी को कोई पता नहीं है।
पकड़ी जा चुकी है ड्रग्स बनाने की फैक्ट्री
ग्रोथ सेन्टर में ही डायरेक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेन्स (डीआरआई) के अधिकारी ग्रोथ सेन्टर में ‘म्याऊं-म्याऊंÓ नामक नशीली ड्रग बनाने की फैक्ट्री पकड़ चुके है, पर राज्य सरकार के किसी भी महकमे को इसकी भनक तक नहीं लगी। अब भी कई फैक्ट्रियां ऐसी चल रही है जिसमें रीको के दस्तावेज में प्रोडक्ट कुछ अलग बताए हुए है और वास्तव में कुछ अलग ही प्रोडक्ट बन रहे हैं।
पर्यावरण बिगाडऩे में बजरी-पत्थर माफिया भी शरीक
ब्लॉक में पत्थर व बजरी खनन पर रोक होने के बावजूद अवैध रूप से इनका धड़ल्ले से खनन हो रहा है। बनास नदी से रोजाना करीब सौ से डेढ़ सौ ट्रैक्टर बजरी पार होती है। अन्य नदी-नालों का भी यही हाल है। मुदरला के पास हाल ही में तहसीलदार ने करीब बीस-इक्कीस हजार टन बजरी पकड़ कर भारी भरकम जुर्माना भी थोपा था। खनिज विभाग कार्रवाई के नाम पर औपचारिका निभा लेता है। यही हाल पत्थर माफिया का है। पत्थर माफिया ने कुई-सांगणा, भैंसासिंह, चनार, आवल, मावल तरफ की कई हरी-भरी पहाडिय़ों को गंजी बना चुके है, पर वन विभाग के पेट का पानी नहीं हिला।
इन्होंने बताया …
वन क्षेत्र में अवैध पत्थर व बजरी का खनन करने वाले कई लोगों के खिलाफ सालभर में कार्रवाई की गई। करीब पंद्रह से बीस लाख का जुर्माना भी थोपा है। केमिकल उड़ेलने वालों के बारे में सूचना मिलने पर उनके खिलाफ भी कार्रवाई करने में कोई हिचकिचाहट नहीं की जाएगी।
– लक्ष्मण सुरेशा, रेंजर, आबूरोड।
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