छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित एक प्राकृतिक झील है। यहां यूपी, एमपी व छत्तीसगढ़ के लोग पिकनिक मनाने के लिए आते हैं। यहां पानी पहाड़ों से हमेशा झरना के रूप में गिरता रहता है। यहां की खूबसूरती चिकने एवं सुडौल पत्थर बनाते हैं। सैलानी यहां झरने का आनंद लेते हैं। पानी में बहाव तेज रहता है। नये साल परे यहां काफी भीड़ रहती है। दुविधा यह कि मौजूदा वक्त में नक्सल प्रभावित होने की वजह से लोग दिन में ही पिकनिक मनाकर लौट आते हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर प्राकृतिक माड़ा की गुफाएं हैं। माड़ा की गुफाएं पर्यटकों को लुभाने वाली हैं। चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं ७ वीं सदी की प्रतीत होती हैं। जिन्हें राष्ट्रकूट के शासनकाल का एक अद्भुत नमूना माना जाता है। सैलानी यहां पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं। यहां पर विवाह माड़ा गुफाएं, रावण माड़ा गुफाएं, शंकर-गणेश माड़ा गुफाएं और जल-जलिया माड़ा गुफाएं हैं।
रिहंद डैम को इस जीवनदायिनी कहा जाता है। एशिया की सबसे बड़ी झील होने के नाते सैलानी यहां घूमने के लिए जाते हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने रेणुका नदी पर वर्ष १९५४ में इस बांध की आधारशिला रखे थे। हालांकि सैलानी यहां भी पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं।
जिला मुख्यालय से महज 7 किमी दूर मुड़वानी डैम स्थित है। हालांकि अभी यह डैम ज्यादा विकसित नहीं हो पाया है। मगर, जिला प्रशासन ने इसे पर्यटक स्थान के रूप में विकसित करने की योजना तैयार किया है। फिलहाल यहां लोग पिकनिक मनाने जाते हैं। चारों ओर ओबी से घिरा यह डैम देखने में दूर से ही खूबसूरत लगता है।
यह झील एनटीपीसी शक्तिनगर परिक्षेत्र में है। जिसे एनटीपीसी प्रबंधन ने निर्माण कराया है। प्राकृतिक झील प्राकृतिक न होते हुए भी लुभाती है। पानी का बहाव ऊपर से होता है। यहां भी लोग पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं। यहां परिवार के साथ जाना अच्छा होगा, क्योंकि सुरक्षा गार्ड तैनात रहते हैं।
बंधा काचन जलाशय चारों तरफ जंगलों से घिरा है। जलाशय का नजरा दोनों ओर पहाड़ और बीच में काचन जलाशय की तस्वीर युवाओं को आकर्षित करती है। यहां भी नए वर्ष पर लो पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं। जंगलों की बीच जलाशय की खूबसूरती देखते बनती है।