सीकर/पाटन. करगिल युद्ध से जुड़ी ये दास्तां शहीद की शहादत के साथ वीरांगना की वीरता की भी नायाब नजीर है। करगिल युद्ध में शहीद कल्याण सिंह ने युद्ध में दुश्मनों की पांच गोली खाकर तीन घुसपैठियों को मौत के घाट उतारा था। पर युद्ध में विजय के बाद भी शहीद वीरांगना सुशीला कंवर ने उस जंग को जहन में जिंदा रखा। शहादत के समय ही दुश्मनों से बदला लेने के लिए वीरांगना ने बेटों को सेना में भेजने की घोषणा कर दी थी। जिसे पूरा करने के लिए वीरांगना ने अपने बेटों को बचपन से पिता की शौर्य गाथाएं सुनाकर उनमें सैनिक जज्बा भरा। पिछले साल दिल का दौरा पडऩे पर ली अपनी अंतिम सांस तक वीरांगना बेटों को उनकी अंतिम सांस तक राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित रहने का जोश भरती रही। नतीजतन बड़ा बेटा सेना में भर्ती होकर कई मोर्चों पर दुश्मनों को ललकार चुका है तो दूसरा बेटा भी सेना भर्ती की पूरी तैयारी में है।
भाइयों को देख बने सैनिक, छुट्टी में पत्नी को सुनाते वीरता के किस्से
शहीद कल्याण सिंह का पूरा परिवार ही देशभक्ति की मिसाल रहा है। 9 मई 1965 को जन्मे कल्याण सिंह के पांच भाइयों वाले परिवार में बड़े भाई जसवंत सिंह, जय सिंह तथा राम सिंह भी सेना में रहे। जिन्हें वर्दी में देखने के साथ ही कल्याण सिंह ने भी सैनिक बनकर देश के लिए कुछ कर गुजरने का सपना बचपन में ही पाल लिया। 19 दिसंबर 1983 को 18 वर्ष की उम्र में ही राजपूताना राइफल्स में भर्ती के साथ उनका सपना भी पूरा हो गया। चार मई 1984 को कल्याण सिंह का विवाह अलवर जिले के नांगल सालिया गांव निवासी सुशीला कंवर के साथ हुआ था। जिन्हें भी छुट्टियों में आने पर वह राष्ट्रभक्ति की गाथा सुनाया करते।
ऑपरेशन विजय में तीन घुसपैठियों को किया ढेर
करगिल युद्ध के दौरान कल्याण सिंह की 8 राजपूताना राइफल्स को राष्ट्रीय राइफल्स के साथ जोड़ दिया गया। ऑपरेशन विजय में कल्याण सिंह की यूनिट को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में लगाया गया। जहां घुसपैठियों के तलाशी अभियान में अचानक उनका मुकाबला दुश्मनों से हो गया। कल्याण सिंह ने वीरतापूर्वक उनका मुकाबला कर तीन आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया थ। इसी दौरान उनके सीने पर दुश्मनों की पांच गोलियां लगने पर वे शहीद हो गए।
तीन बेटों में से एक की भर्ती, दूसरे की तैयारी
कल्याण सिंह के शहीद होने पर बेटों को भी सेना में भेजने की घोषणा करने वाली वीरांगना सुशीला कंवर का बड़ा बेटा अशोक आरआर बटालियन में अंबाला में नियुक्त है। जो खुद भी कूपवाड़ा सहित कई जगहों पर दुश्मनों को ललकार चुका है। दूसरा बेटा प्रेम सिंह भी सेना में जाने का इच्छुक रहा, लेकिन चयन नहीं होने पर दुकान संचालित कर रहा है। वहीं, तीसरा बेटा अरविंद सिंह तंवर अब भी सेना भर्ती की ही तैयारी कर शहीद पिता की राह व वीरांगना मां की बात पर चलना चाहता है।