राजस्थान के लोक परंपरा में अपना खास स्थान रखने वाला गणगौर का दो दिवसीय मेला सीकर जिले के रानोली में बड़े ही धूमधाम से भरता है। अंचल में सर्वाधिक संख्या के साथ सबसे पुराना यही मेला है। जो 2 दिन तक रानोली नदी के पाठ पर भरता है। बुजुर्गों की मानें तो करीब ढ़ाई सो वर्षों से भी अधिक समय से यह परंपरा चलती आ रही है। बात राजा रजवाड़ों के समय की करे तो राजा शम्भू सिंह जो खंडेला रियासत से यहां आए थे। उस समय गांव में गांव ना हो कर के एक ढ़ाणी थी। जिसका नाम रिणवा वाली ढाणी था। उन्होंने इस गांव को बसाया और इसका नाम रानोली रखा। इसके बाद राजा पृथ्वी सिंह का शासन शुरू हुआ। उस समय मेड़ता में गणगौर की प्रतिमाएं बनती थी। जिसे रानोली लेकर आए।तबी से गणगौर की शाही सवारी मुख्य गढ़ परिसर से नदी के पाठ से होकर के काली देह तिवारी तक निकलती थी। जिसमें महिलाएं गीत गाती हुई पीछे चलती थी। गणगौर को राजा के दरबारी अपने सिर पर ऊच कर निकलते थे। वहीं नदी के पाठ पर हाट बाजार मेला भरता था, ऊंट घोड़ों की दौड़ होती थी। जिसके बाद पीडी दर पीडी गणगौर की सवारी निकलती गई। राजवंश के आखरी पिंडियों में राजा शेर सिंह ,राजा पृथ्वी सिंह, राजा नवल सिंह, राजा हुकुम सिंह, राजा भरतावरसिह, राजा छत्रपाल सिंह, राजा अमर सिंह, राजा आनंद सिंह के समय बड़े शाही तरीके से गणगौर की सवारी निकाली जाती थी। जो अभी भी अनूप रूप से जारी है।लेकिन समय के साथ-साथ सब कुछ बदलता गया और राजा रजवाड़ों का समय तो रहा नहीं लेकिन राजवंश की दसवीं पीडी जनमानस की इस भावना को बरकरार रखे हुए हैं। अब भी रानोली की गणगौर गढ़ परिसर से पूरे गांव के सहयोग से निकाली जाती है। 5 साल से लगातार रानोली सरपंच विनोद यादव द्वारा मेले में बिजली पानी सहित गुप्त कैमरे के पुख्ता इंतजाम कराते हैं। जिससे आम जनता को किसी प्रकार की परेशानी ना हो।