जो 20 साल की उम्र में ही 1991 की सेना भर्ती के जरिए उसे 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही पद तक ले गया। लेकिन, यह तो मुकाम था। भारत माता के लिए कुछ कर गुजरने की मन में ठानी मंजिल अभी बाकी थी। जिसका जिक्र वह छुट्टियों में घर लौटने पर अक्सर यार-दोस्तों में कहता, ‘कुछ ऐसा कर जाउंगा कि सब याद रखेंगे’। आखिरकार 1999 के करगिल युद्ध में उसने कही कर भी दिखाई।
सात जुलाई को मोस्का पहाड़ी स्थित पाकिस्तानी घुसपैठियों का आसान निशाना होने पर भी दुर्गम चट्टानों को पार करते हुए इस जांबाज ने अपनी पलटन के साथ एक के बाद एक 15 घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन, जैसे ही वह सैनिक चौकी पर भारतीय झंडा फहराने के मुहाने पर था, इसी दौरान दुश्मन के एक आरडी बम के धमाके ने उसे हमेशा के लिए मौन कर दिया। जिस तिरंगे से उसे सबसे ज्यादा प्रेम था उसी में लिपटी उसकी पार्थिव देह अगले दिन घर पहुंची। उसे नमन करने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा।
बेटों को भी सेना में भेजने की चाह
श्योदाना राम की अपने दोनों बेटों को भी सेना में भेजने की इच्छा थी। जिसे पूरा करने की चाह वीरांगना भंवरी देवी के साथ दोनों बेटों संदीप और प्रदीप ने भी पाल रखी है। संदीप बीटेक कर सेना में अफसर पद पर तो प्रदीप भी सेना की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा है।
शहीद से पूछकर निकलते हैं घर से
श्योदाना राम को शहीद हुए 20 साल हो गए। लेकिन, आज भी वह परिवार में मुखिया की भूमिका में है। घर से अंदर- बाहर के रास्तों पर सामने ही परिवार ने श्योदाना राम की तस्वीर लगा रखी है। उसके सामने परिवार के सदस्य अपने घर से आने और बाहर जाने की सूचना देते हैं। शहीद की याद परिवार के जहन के साथ घर के जर्रे जर्रे में है।