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स्वामी विवेकानंद तारामण्डल का भी करते थे अध्ययन, इस महल की छत पर लगवा रखा था टेलीस्कोप

स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले डॉ जुल्फीकार के अनुसार स्वामी विवेकानंद अपने जीवन काल में खेतड़ी 3 बार आए।

सीकरDec 12, 2017 / 02:42 pm

vishwanath saini

खेतड़ी. रामकृष्ण मिशन आश्रम की ओर से विरासत दिवस समारोह समिति के तत्वावधान में मंगलवार को स्वामी विवेकानंद के शिकागो धर्म सम्मेलन में वापसी के पश्चात 12 दिसम्बर 1897 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के खेतड़ी में आगमन की याद में विरासत दिवस समारोह मनाया जा रहा है। स्वामी जी और खेतड़ी के तत्कालीन महाराजा अजीत सिंह में गहरी मित्रता थी।
विरासत दिवस कार्यक्रम खेतड़ी

खेतड़ी स्थित आश्रम के सचिव स्वामी आत्मानिष्ठानंद ने बताया कि सुबह 8 बजे से विभिन्न स्कूलों के छात्र कस्बे में प्रभात फेरी निकाली, जिसमें स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह की झांकियां सजाई गई। शाम 4 बजे राजा अजीत सिंह पार्क से राजा अजीत सिंह द्वारा स्वामी विवेकानंद का सम्मान व जीवंत झांकियों के साथ शोभायात्रा तथा इसमें स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी जीवंत झांकियां होंगी। शाम 5.00 बजे पन्नासर तालाब पर स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह का नागरिक अभिनंदन व शाम 6 बजे से राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर के सौजन्य से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा।

व्याकरण का अध्ययन खेतड़ी से किया
स्वामीजी जब खेतड़ी आए तब राज पंडि़त नारायणदास से व्याकरण,अष्टाध्यायी एवं महाभाष्य का अध्ययन किया। यहां रहते हुए स्वामीजी ने खेतड़ी के राजा अजीत सिंह को विज्ञान का अध्ययन करवाया। स्वामीजी की सहमति से खेतड़ी में एक प्रयोगशाला भी स्थापित की गई। अजीत सिंह के महल की छत पर एक टेलीस्कोप लगाया गया। जिससे स्वामीजी एवं राजाजी तारामण्डल का अध्ययन करते थे।
मैना बाई प्रकरण है खेतड़ी की घटना
स्वामी विवकानंद खेतड़ी जब दूसरी बार आए तब दीवान खाना में छत पर बने कमरे में ठहरे हुए थे। नीचे राजा अजीत सिंह दरबारियों सहित बैठे तथा राज नर्तकी मैनाबाई राजा के पुत्र जन्मोत्सव पर नृत्य कर रही थी। राजाजी ने स्वामी जी को भी नौकर को भेजकर नीचे बुलाया। स्वामी जी नीचे राज नर्तकी को नृत्य करते देख तुरन्त वापस जाने लगे। इस पर राज नर्तकी ने तुरन्त सूरदास का भजन ‘प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो…’ गाया तो स्वामीजी राज नर्तकी के इस भजन से वे प्रभावित हुए व वापस आकर राज नर्तकी मैना बाई के चरणों में नमन कर कहा कि माता मुझसे भूल हुई मुझे माफ कर दो मुझे आज ज्ञान की प्राप्ति हुई है।
 

देसी घी की रोशनी जगमग उठा था खेतड़ी

स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में कहा था कि भारत की उन्नति के लिए आज मैंने जो कुछ किया है यदि राजा अजीत सिंह मुझसे नहीं मिले होते तो शायद नहीं कर पाता।(इसका उल्लेख पंडि़त झाबरमल शर्मा की पुस्तक राजस्थान में स्वामी विवेकानंद में हैं)। आज से ठीक 120 साल पहले जब स्वामी विवेकानंद शिकागो से लौटकर खेतड़ी आए थे,तब देसी घी के दीप जलाए गए थे।
स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले डॉ जुल्फीकार के अनुसार स्वामी विवेकानंद अपने जीवन काल में खेतड़ी 3 बार आए। सर्वप्रथम 7 अगस्त 1891 को, दूसरी बार 21 अप्रेल 1893 तथा तीसरी बार 12 दिसम्बर 1897 को शिकागो धर्म सम्मेलन से लौटने के बाद खेतड़ी आए। खेतड़ी सीमा पर बबाई से राजा अजीत सिंह स्वयं राजबग्घी में बैठकर स्वामी जी की अगवानी कर खेतड़ी लेकर आए।
 

राजबग्घी से स्वामीजी को जुलूस के रूप में पन्नासर तालाब पर ले जाया गया। रास्ते में नगरवासियो ने जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वामी जी का स्वागत किया। शाम को पन्नासर तालाब पर एक जलसे का आयोजन हुआ। इसी दिन ठिकाना खेतड़ी की मुनादी पर भोपालगढ़ एवं सम्पूर्ण खेतड़ी में घरों में दीपक जलाकर रोशनी की गई।
1963 में खेतड़ी में प्रदेश का प्रथम रामकृष्ण मिशन आश्रम खुला
स्वामी विवेकानंद एवं राजा अजीत सिंह की यादों को चिरस्थायी बनाने के लिए पंडित झाबरमल शर्मा एवं पंडित वेणीशंकर शर्मा के प्रयासों से खेतड़ी के तत्कालीन राजा बहादुर सरदार सिंह ने अपना फतेह विलास महल एवं जनानी ड्योडी रामकृष्ण मिशन आश्रम को दान में दे दी। इसमे प्रदेश के प्रथम रामकृष्ण मिशन आश्रम खेतड़ी का विधिवत उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल डा.सम्पूर्णानंद ने 11 नवम्बर 1963 को किया।

पांच करोड़ का खर्चा
राजस्थान सरकार व केन्द्र सरकार के आर्थिक सहयोग से रामकृष्ण मिशन में स्वामी विवेकानंद की याद को चिर स्थाई बनाने के लिए लगभग पांच करोड़ रुपए की लागत से स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय संग्रहालय का निर्माण कार्य जारी है। रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी आत्मनिष्ठानंद ने बताया कि इस राष्ट्रीय संग्रहालय का लगभग तीन-चौथाई से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है।

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